उंगलिया घी से निकाल लीजिए



First time wrote sequel of poem this poem is sequel of  

आज रोते हो बिलखते हो
पछताते क्यों हो

जब हम कहे थे
न डालो पंचो उंगलिया घी में 
बुराईयां सारी दिखी थी हमी में,
मेरी कही को
सुन के भी कर गए असुनी में
लाख समझाया
न डालो पंचो उंगलिया घी में.

दोस्त थे तुम्हारे
तुम गिनने लगे दुश्मनी में,
हमने कहा था
दिल से खेलो ना
खिलवाड़ ना करो
ये प्यार का भूखा है औज़ार ना करो,
अरमानो को भरमाया है
खूब कहर ढाया है.


दिल को फूटबाल समझ बैठे थे तुम
पर भूल गए
तुम्हारे सिने में भी दिल है,
तुम रखो खिलवाड़ की नियत
और न चाहते हुए भी
वो तुम्हारा खुदा हो जाए,
अब देख लीजिए
दिल लगाने से क्या क्या हो जाए.


वो भी खेले तुमसे
न प्यार करें
एतबार तोड़े है 
तुम्हारा कौन एतबार करें

तुम भूल गए
पाप का घड़ा
कितना भी हो बड़ा
एक दिन भर जाता है
पाप उतर आता है  
जो दर्द दुनिया को देते हो
तुम्हारा भी हो जाएगा
पाप उतर आएगा

हमने बहोत समझाया
न डालो पंचो उंगलिया घी में
नासमझी सारी भरी थी तुम्हीं में

जिन्हों ने डाल रखी है
पंचो उंगलिया घी में
वो भी जान जाइए
उंगलिया घी से निकाल लीजिए
घी उँगलियो को फिसलन देगी
कोई अंगूठी न टिकेगी

: शशिप्रकाश सैनी 

Comments

  1. ytharth parak rachana....ati sundar

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  2. घी उँगलियो को फिसलन देगी
    कोई अंगूठी न टिकेगी

    ---Poignant lines..beautifully penned !!:))

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  3. Bahut sundar, Shashi! Aaj kal sab chahte hain ki paanchon ungliyan ghee main rahe aur sir kadhai main.

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