चाल में चंचल रही
My 1st attempt at Sonnet
चाल में चंचल रही
रस घुले जब बोलती
धडकनों हलचल रही
किवाड़ दिल के खोलती
खिड़कियो में जब खड़ी
रास्ता वो हो गया
आँखों से आंखे लड़ी
मै उन्ही में खो गया
कॉल पे अब कॉल जी
जानेजा डार्लिंग हुई
मै हुआ बेहाल जी
जब भी वो रोमिंग हुई
मै सुखी जमी वो मौसम-ए-बरसात है
धडकनों में धड़कने वो दिल-ए-ज़ज्बात है
: शशिप्रकाश सैनी
बढिया प्रस्तुति ..
ReplyDeleteउन्हें रोंमिंग न होने दें ..
समग्र गत्यात्मक ज्योतिष
आभार संगीता जी
Delete:-)
ReplyDeleteबढ़िया.....
अनु
आभार अनु जी
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ReplyDeleteOne of the best sonnets I have ever read! :D
ReplyDeleteधन्यवाद आकांक्षा जी
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