मैं बैकबेंचर रहा हूँ

मैं बैकबेंचर रहा हूँ
और हमेशा रहूँगा !

कितनी ही बार खदेड़ा गया हूँ
पहली बेंच पे
पर लौट आता हूँ 
दूर क्लास के कोलाहल से
शांति की तलाश में बुद्ध हूँ जैसे

एक अश्वमेध चल रहा है मुझमें
सोच के घोड़े
चारों दिशाओं में दौड़ा रहा हूँ
पीछे बैठा हूँ, पर पीछे नहीं हूँ
अपनी एक अलग ही दुनिया बना रहा हूँ
पीछे बैठा हूँ, पर पीछे नहीं हूँ

कभी शोर का संगीत सुन लेता हूँ
कभी अपने मन की चुप्पी
सारे कोलाहल पे बुन देता हूँ
जब तीसरी आँख खोलता हूँ
तांडव कागजों पर ऊकेर देता हूँ
पीछे बैठा हूँ, पर पीछे नहीं हूँ

आज भी ज़िंदगी में 
थोड़ा सा पीछे बैठता हूँ
दुनिया के दाँव पेंच से परे
अपनी ही मौज में चहकता हूँ
हाँ, मैं बैकबेंचर रहा हूँ !

: शशिप्रकाश सैनी

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