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खाली फुकट के तिवारी जी

आज आँख खुली तो पाया हमारे फ़्लैट में खाली फुकट के तिवारी जी घूम रहें थे, ये दिन भर खाली रहते है कौनों काम नहीं इस लिए इन्हें खाली कहा जाता है और फुकट इस लिए कि दिन भर फुकट का सुट्टा ढूंढते रहते है, और हम जी इस लिए लगाए दिए कि जब से आप पार्टी अस्तित्व में आई है कौन जानता है कौन खाली आदमी कब मंत्री बन जाए | इनका पसंदीदा काम है दिन भर बिरहा सुनना घाघरा चोली वाले भोजपुरी गाने इनको सबसे प्रिय है और जब हम से छत पे भेट जो जाती है तो हमे भी जबरदस्ती सुना देते है, ये कहते हुए देखे कवि जी बम्बई में रहते हुए भोजपुरी भूल तो नहीं गए | आज का किस्सा ये है कि आज ये हमारी अम्मा के भेष में आग गए और बोले “कवि जी शादी काहे नहीं कर लेते हो अब तो तुमारी दाढ़ी भी पकने लगी है, ये ही सही बकत है कर लो बाद में कौनो नहीं मिलेगी” अभी बस सो के उठे ही थे और ये वज्रपात मन तो किया इन्हें दंडवत प्रणाम करे फिर सोचे कि हमारा दंडवत जिसे लग जाएगा बिचारा प्रणाम करने लायक नहीं रहेगा, फिर इनपे आगई हमको दया, जवान जुवान लड़का है अभी से इनका प्रणाम खराब कर दिये तो जिंदगी भर कुछ न कर पाएंगे, हम नजर अंदाज किए और सोच...

भितरी क हई, भितराय देब

भितरी क हई, भितराय देब कनवा के पकौड़े, हीरा की चाय, मुस की इस्त्री, ये तीनो मेरे गाँव की खासियत हुआ करती थी, गाँव भितरी (सैदपुर) जिला: गाजीपुर, उ.प्र . कनवा के पकौड़े तो हम कभी चख नहीं पाए हाँ उसका बेटा भी कोई कम अच्छे पकौड़े नहीं बनाता था, जिसका लुत्फ़ हमने बहुत उठाया पर पापा कहते हैं कनवा के पकौडों के सामने ये कही नहीं ठहरते हमारे नसीब में तो ये भी था, अगर कभी हमने शादी की तो हमारे बच्चों के नसीब में ये भी नहीं होगा, कनवा का बेटा पईसा कमाने बम्बई चला गया करीब चार साल पहले, अब वहां साइकिल रिपेयर की दुकान है. हीरा की चाय! जरुर पी पर बस एक बार यही कोई डेढ़ साल पहले BHU में MBA के दौरान, अगले सप्ताहांत में जब फिर गाँव गए तो पाता चला हीरा ने आत्महत्या कर ली, अब हमारे गाँव की एक और खासियत चली गई. अब जो बचा है, वो है मुस की इस्त्री, मुस कि इस्त्री किए हुए कपड़े एक धुलाई बाद भी बिलकुल इस्त्री किए हुए लगते है, बुढा तो मुस भी हो गया है न जाने कब चला जाए कह नहीं सकते, जैसे मुन्ने भाई चले गए उन्ही के स्कूल में हम गधइया गोल टक पढ़े थे, मुन्ने भाई का आम का बगीचा हुआ करता था, दसहरी आम के उस बगीचे के तो क...

Flyover प्रेम

आज बहोत थका हुआ था, सोना चाहता था अभी भी आंखों में नींद है, पर एक बार फिर से शकरपूर फ्लाईओवर पे बैठा हूँ और घड़ी बता रही है कि पांच बजने को है। लगता है यह फ्लाईओवर हमारे प्यार में पड़ गया है देखिए जबरदस्ती मुझे बुला लिया, बिजली कटवा कर हद है। बड़े वक्त से तमन्ना थी कोई हमारे प्यार में पड़े हम किसी के प्यार में पड़े, पर यह तो भगवान ने हद ही कर दी, कोई लड़की नहीं बची थी क्या? सीधे फ्लाईओवर को हमारे इश्क़ में डाल दिया। भगवान न हुआ कपिल शर्मा हो गया बात बात पर मजाक, आपको दर्शक बना दिया मेरी जिंदगी को "Comedy Life with God"। हाँ माना हम सब उसकी कठपुतलियां हैं पर इसका मतलब यह नहीं कि पूरी फिल्म में मुझसे Comedy sequence ही कराए जा रहे, यार कुछ Romantic scene डाल देते कुछ Stunt type, Stunt type इसलिए कि जो हमारा आकार है उस हिसाब से हम सिर्फ खाने या सोने के साथ Stunt कर सकते हैं, सोने से याद आया चार-पाँच Bedroom scene भी डाल दो, प्लीज भगवान अब तो दाढ़ी भी पकने लगी है कब डालोगे Bedroom scene। उम्र बीती जा रही है और चंद्रगुप्त ने भी हमारी script में बस comedy लिखी, अइसा है गुरु ज...

इश्तिहार

आज एक बार फिर शकरपूर फ्लाईओवर का रूख किया है, बार बार यहाँ क्यों आता हूँ शायद बनारस के घाटों की याद खींच लाती है, तुलना तो मुमकिन ही नहीं इस फ्लाईओवर और मेरे चेत सिंह घाट की, 'मेरा' लागाव वश बोल रहा हूँ अधिकार से नहीं। यहाँ गंगा नहीं यमुना भी कुछ दूर पर है, शोर बहुत है यहाँ, हाँ यह खुला आसमान उस जिंदगी को याद करने मे मदद तो करता ही है, शायद इसलिए आ जाता हूँ यहाँ। सड़क की उस पटरी पर दो लोग इश्तिहार पर इश्तिहार चिपका रहे हैं, CET के इश्तिहार के ऊपर B.Ed का इश्तिहार चिपकाया जा रहा है। बस जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है आप सारी उम्र अपना इश्तिहार बनाने में लगे रहते हैं, किसी तरह खींच खाच कर गर आपने अपना इश्तिहार लगा भी दिया तो अगले ही दिन कोई आएगा गोंद लगाकर अपना इश्तिहार चिपकाता जाएगा, उसका भी इश्तिहार कुछ ज्यादा दिन नहीं टिकना वहाँ पर, यहाँ हर शेर पर सवा शेर मौजूद हैं। आखिर हम और आप हैं क्या किसी दीवार पर हजारों इश्तहारों के नीचे दबे इश्तिहार ही तो हैं और बजार में रोज नए इश्तिहार आते हैं और हम दबते चले जाते हैं। क्या कहा! आपको हजारों इश्तहारों में इश्तिहार नहीं बनना, तो कुछ अलग क...

बनारस और हम

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मेरा परिवार मुंबई में बसा हुआ है पर मूलतः हम है बनारस के पास गाजीपुर से, ठीक ठीक लगा लो तो बनारस भी कह सकते है, पर बनारस कभी कैंट रेलवेस्टेशन से ज्यादा देखा नहीं. पिछली सर्दियों में माँ को बोला कि ये आखिरी साल है BHU में फिर MBA खत्म हुआ तो पता नहीं किस्मत कहा ले जाए, MBA के बहाने ही सही आप लोग चले आओ आपको बनारस घुमा देता हूँ. पापा को घूमने के लिए मनाना कोई आसान खेल नहीं है, एक मोर्चे से तो कभी बात ही नहीं बनती, इस के लिए हमें दो मोर्चे खोलने पड़े एक माँ कि तरफ से, दूसरा बहन की तरफ से. माँ तो माँ है मान गई पर बहन तो बहल सकती नहीं उसे कुछ सोलिड लालच देना पड़ा, कुछ ख्वाब दिखाएँ और बनारस के ख्वाब बेचने में राँझना फिल्म हमारे बहुत काम आई. ख्वाबों ने असर दिखाना शुरू किया बहना ने भी अपना मोर्चा खोल दिया, पापा कितने भी सख्त क्यूँ न हो हैं तो आदमी ही और जब दो औरते मोर्चा खोल दें तो बेचारा आदमी भी क्या करे रहना तो घर में ही है, पापा को भी मनना पड़ा और दिसम्बर का दौरा तय हो गया. जिस दिन मेरा परिवार बनारस लैंड किया उस दिन सैमसंग के कॉलेज में प्लेसमेंट के लिए आने के आसार बनने लगे, ह...

PACH प्रदेश Episode 3

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वैद्य के कहें अनुसार एक आदमी हल्दी लेने चला जाता है दूसरा काव्य कुँए कि तरफ भागता है | हल्दी लेने भुलक्कड़ राम गए है और जाते ही हल्दी का नाम भूल जाते है और दुकानदार से बहस होने लगती है | (किराना दुकान पर का दृश्य) भुलक्कड़ राम : हमको एक ठो चीज चाहिए दुकानदार : फल दे दूँ या बीज चाहिए भुलक्कड़ राम : हम ना बोले वो बोले है दुकानदार : नाम बताओ तब ले जाओ बे पईसा के दें दें तुमको इतने भी हम ना भोले है भुलक्कड़ राम : ओही जो मरहमपट्टी करते जख्म लगे तो ओही भरते जिनके हाथों नेक दुआ है उनका ही आदेश हुआ है दुकानदार : सीधे तुम काहे नै बोले वैद्य बुलाए सामान ले चलो चाहें तो दुकान ले चलो भुलक्कड़ राम : दुकान नहीं हमे दवा चाहिए जख्मी मन को ठंडक दे दे ऐसी हमको हवा चाहिए दुकानदार : खेल न खेलों न खिलवाओ सीधे बोलो क्या चाहिए जख्मी मानुष तड़प रहा है उसकी ना हमें आह चाहिए जल्दी बोलो क्या चाहिए भुलक्कड़ राम : पेड़ न डाली, पौधा है रंग से पीला औ शर्मीला माटी के अंदर छुप रहता दुनिया कहती जड़ है जड़ है जड़ है जड़ है फिर भी देता जीवन है दुकानदार : देर लगी तुम्हे जल्दी चाहें सीधे...

एक अंतहीन राह

पैरों में हवाई चप्पलें, पैरागान की नहीं महंगी वाली बाप के पैसे की, खुद की औकात एक चप्पल खरीदने भर की नहीं फिर भी आंखों ने ख्वाब पाल लिए। सड़क की उस पटरी पर एक शख्स कुत्ता टहलाता हुआ, सड़क की इस पटरी पर ख्वाब इसे टहलाते हुआ, उस तरफ इंसान मालिक है, इस तरफ ख्वाब मालिक है। इंसान कुत्ते को हकीकत खिलाता हुआ, हकीकत माने रोटी और बोटी , जो मिले तो हकीकत नहीं तो ख्वाब । सड़क की इस पटरी पर ख्वाब इंसान को ख्वाब खिलाता हुआ, ख्वाब जो हकीकत नहीं क्योंकि ख्वाब तो ख्वाब ही होता है ना, देखते सभी हैं उस पर निकलते कम ही हैं, ख्वाब ! ख्वाब रोटी और बोटी नहीं जुटा सकते क्योंकी ख्वाब, ख्वाब की ही खुराक दे सकते हैं और वहीं दे रहें हैं, पर कब तक यह हवाई चप्पलों वाला ख्वाब पर जीएगा । समाने एक फ्लाईओवर है, गाड़ियाँ ऊपर से जाती है और रेल नीचे से , सड़क पर छोटी बड़ी मझौली हर तरह की गाड़ियाँ जाती है, पर पटरियों पर सिर्फ लंबी रेलगाड़ियां, और जब रेलगाड़ी गुजरती है तो फ्लाईओवर कांपता है, फ्लाईओवर की सड़क कांपती है, और सड़क पर चलती छोटी मोटी मझौली गाड़ियां भी। सड़क हर वक्त भरी रहती है ट्राफिक जाम हो जाता है, रेल क...

PACH प्रदेश - Episode 2

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Photo Courtesy:  PACH पच पर्वत की तलहटी में बसा था यह पच प्रदेश, आकार में गांव और भावनाओं से प्रदेश । गांव की सीमा से थोड़ी ही दूर खलिहानों की ओर एक नदी बहती थी, स्वभाव से सरल और शीतल, तरंगिता जी हाँ ! तरंगिता ही नाम था उस नदी का, तरंगिता की आवाज इतनी मधुर कि जैसे कोई वाद्ययंत्र बज रहा हो और पूरा पच प्रदेश इसकी ताल पर झुम रहा हो। प्रदेश का मुख्य द्वार उत्तर की ओर था, द्वार ऐसा वैसा नहीं, जीवन से भरपूर द्वार था यह, ईट पत्थरों का निर्जीव द्वार नहीं । अरे नहीं समझें, आम और पलाश के पेड़ थे दोनों ओर, एक दूसरे से गले मिलते हुए आलिंगन करते हुए, हवा के झोखें छेड़ भर जाए तो कविता करने लगता था यह द्वार । यहाँ मकान किसी कतार में नहीं लगे थे, फिर भी दूर से देखने पर गोलाकार होने का भ्रम पैदा कर रहे थे। गांव के बीचोबीच एक मंदिर था, क्या आप भगवान के दर्शन करना चाहते है जाइए कर लीजिए। ( कुछ देर बाद) क्या कह रहें हैं ! मन्दिर में कोई प्रतिमा नहीं थी, सिर्फ और सिर्फ किताबें थीं, क्या आप बता सकते हैं कौन सी किताबें थीं, क्या नहीं ! आपने ध्यान नहीं दिया । चलिए मैं दिखता हूँ, यह देख...

PACH प्रदेश Episode 1

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उँगलियाँ थरथर कांप रही है मेरी, नहीं नहीं आप गलत समझ रहें है ये मदिरा का प्रभाव नहीं है, असल में पच प्रदेश को शब्दों में बांधना बड़ा ही कठिन कार्य है, फिर भी मैं कोशिश करूँगा | आज से कई सदी पहले एक प्रदेश हुआ करता था “पच” उसे “पचप्रदेश” के नाम से भी जाना गया, इस प्रदेश की विशेषता यह थी कि यहाँ सभी कवि थे, नहीं नहीं आप गलत राह ले रहें है थोड़ा पीछे आइए आप आडम्बर से ढके कवियों की तरह मुड गए वो पच प्रदेश नहीं वो आडम्बर प्रदेश है, वहाँ भाव की प्रधानता नहीं | भाव तो आपको पच प्रदेश में मिलेंगे भाव जादुई भी हैं और साधारण भी, इतने साधारण की पच कवि आपके बगल से निकल जाएगा आपको पता तक नहीं चलेगा, लीजिए हम फिर भटक गए अतीत की हम ने बात ही नहीं की ठीक से, वर्तमान पे टिप्पणी करने लगे, पहले बात अतीत की | आज से करीब दो हजार वर्ष पहले भारत के एक कोने में पच प्रदेश हुआ करता था, था तो पच प्रदेश गाँव के क्षेत्रफल का, पर हर घर अपने आप में एक गाँव सा था, और हर शख्स न जाने कितने ही किरदार जीता, इसी वजह से पच को कभी गाँव नहीं कहा गया, गाँव तो छोटा होता है पच तो सीमाहीन था पच की न कभी कोई सीमा हुई न ...

पल्लवी

माथे का पसीना है कि बढ़ता ही जा रहा है, चिंता की लकीरें छिपाएँ नहीं छिप रही, आंखें भीड़ में किसी को तलाश रही है, कनाट प्लेस में रवि पहले कभी इतना चिंतित नहीं दिखा, यहाँ आते ही उसका चेहरा खिल जाता था, जाने आज क्या हो गया है। कारण, कारण खुद रवि बताएगा, इस मुस्कुराहट का, "यहाँ आते ही दिन भर का दर्द काफूर हो जाता है, बॅास की गाली, महीने का टारगेट यहाँ तक पे चेक का मातम भूल जाता हूँ, नहीं नहीं, आप गलत समझ रहे हैं, कनाट प्लेस में मेरा कोई निजी प्यार नहीं जो देख मन मुस्काता हो, मैं तो यहाँ खूबसूरत चेहरे देखना आता हूँ, भावओं से भरे हुए चेहरे, हर चेहरे की अपनी कहानी है, मुझे यहाँ अब लोग नहीं दिखते दिखती है तो बस कहानियाँ । अब आप पूछेंगे किसी की कहानी बीना बात करें कैसे जान लेता हूँ, ये आंखें सब बता देती है, आंखें बस दुनिया देखने के काम नहीं आती, जितना ये आपको दुनिया से जोड़ती है उतना ही ये दुनिया को आप से जोड़ती है, नहीं समझें खिड़की हैं ये आंखें बस इतना है कि आप को तो सारी दुनिया आसानी से दिख जाती है, पर आपके अंदर की दुनिया देखने के लिए उस बाहरी दुनिया को आपके स्त...

चाय बिगड़ी बात बनाएँ

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आज हम बात करेंगे चाय की, जो की दूध, पानी, चीनी और एक विशेष पौधे की पत्तियों से तैयार कि जाती है, अंग्रेज जब भारत छोड़ के गए तो वो अंग्रेजी के साथ साथ चाय छोड़ गए, भारतीय व्यवस्था को चलाने में चाय और अंग्रेजी दोनों ही ईंधन लगते है | जी हाँ चाय के पास हर समस्या का उपाय है, चाय के साथ कुछ और वस्तुएं जुड जाएँ, तो वो एक दम अचूक इलाज साबित होती है चाय, नहीं मानते गौर कीजियेगा चाय और सुट्टा, ये जुगलबंदी चिंता मिटाएँ, नए उपाय सुझाएँ, एक हाथ में सुट्टा और दूजे में चाय नया हौसला ले आए अब कहानी चाय-पानी की, चाय-पानी की असल महिमा वही बता सकता है जिसका नित्य सरकारी दफतरों में आवागमन हो, फ़ाइल को हिलाने की सारी परेशानी दूर करे चाय-पानी यहाँ तक कि लड़की के हाथ कि चाय शादी तय कराएं अब हम आते है असली मुद्दे पे, चाय कैसे कुर्सी दिलाएं या चाय कैसे कुर्सी बचाएं मोदी ने चाय कि महत्ता सबसे पहले समझी और दिल्ली सल्तनत के खिलाफ चाय को बखूबी इस्तेमाल भी कर रहें है, “चाय पे चर्चा” को ही ले लीजिए जनता की हाय और मोदी की चाय जब मिल जाए, तो कांग्रेस की कुर्सी जाएँ हाल में पप्पू...

The होली Day २ (The Tiger Series, Episode 3 )

आज होली है, शकरपूर के मानचित्र पर रंग धीरे धीरे उभरने लगे है । हमारी कहानी के मुख्य किरदार अभी सो रहे है क्योंकि उन्होंने ने रात को शक्ति वर्धक पदार्थ का सेवन किया था, कल रात चीता पिचकारी और गुब्बारों के साथ साथ शक्ति वर्धक पदार्थ भी ले आया था और दिन रंगीन करने से पहले भालू, बूढ़ा बाघ और चीता ने रात रंगीन कर ली । हमारे टाइगर पहले से शक्तिशाली है इसलिए वो शक्ति वर्धक पदार्थ का सेवन नहीं करता, हाँ कभी कभार मुह से धुआँ निकालने का करतब जरूर दिखा देता है । सबसे पहले चीता उठता है और कल लाई गई थंडई को सादी से रंगीन बनाने में जुट जाता है, मैं दर्शकों को बताना चाहूँगा जब थंडई में भांग मिलाई जाए तो थंडई सादी से रंगीन हो जाती है , अब धीरे धीरे सारे जानवर उठते है । ( मैं बताना चाहूँगा ये वर्णन आँखों देखा नहीं कानों सुना है क्योंकि मैं उल्लू, अपने मित्र बाज के घोसले में होली मनाने गया हुआ हूँ) चीता : हैप्पी होली भाई लोग सब एक स्वर में : हैप्पी होली चीता : आओ भाई लोग थंडई का आचमन कर के हम होली की शुरुआत करते है टाइगर : सुबह सुबह थंडई पीने की बात कर रहा है, दिमाग टिकाने है या नहीं भ...

The होली Day-१ ( The Tiger Series Episode-2)

हमारा टाइगर कमरे में नहीं सोता, जब उसे पहली बार अजगर मकान दिखाने लाया था तभी टाइगर ने कह दिया “मैं कमरों में नहीं सोता मुझे खुली जगह पसंद है, मेरे लिए हौल में बेड डाली जाए मैं हौल में रहूँगा, हाँ चाहो तो मेरा बेड पर्दों से घेर सकते हो, ताकि आते जाते लोग मुझे देख डर न जाए” | हमारे हौल में कोई पंखा न था, पर टाइगर का जलवा यहाँ भी चल गया, टाइगर ने अजगर की दुम पे पैर रख आज पंखा भी लगवा दिया, बड़े अचरज की बात है अजगर टाइगर की हर बात मानता है, कही टाइगर अकेले में अजगर को धमकाता तो नहीं “सामान दो नहीं तो सम्मान ले लूँगा”, खैर ये तो रहस्य है | बात आज की करते है, आज का दिन बड़ा अजीब जा रहा था, अभी सुबह को ही लीजिए हम सब सो रहें थे, टाइगर भी सो रहा था, टाइगर का अलग से जिक्र करना पड़ता है क्युकी वो टाइगर है वो हम में नहीं आता, टाइगर के सामने हम शब्द बड़ा छोटा मालूम देता है | खैर मुद्दे पे आते है हमारी आँख सबसे पहले खुली सब गहरी नींद में थे, हम सोचने के लिए सोचालय की तरफ बड़े ही थे कि हमें कुछ सुनाई दिया “खड़ी बा सोमो हमार गोरिया आके बईठ जा” उस तरफ नजर फेरी तो देखा पर्दों के बीच में लकडबघ्घा बैठा हुआ था...

एक था टाइगर (The Tiger Series, Episode-1)

आज हम टाइगर की बात करेंगे, ये कोई जंगली नंग धडंग घूमने वाला जानवर नहीं बाकायदा कपड़े पहनता है, इस्मार्ट फोन भी इस्तेमाल करता है और सुना है C.A बनने दिल्ली आया हुआ है | टाइगर यूँ ही नहीं कहते इसे, उम्र महज १८ साल पर है ये टाइगर बड़ा खूंखार, कोई मौका कोई शिकार नहीं छोड़ता और दहाड़ ऐसी कि उड़ीसा तक काँप उठता है इसके खौफ से | ऐसे टाइगर को एक पोस्ट में निपटानें की गुस्ताखी हम नहीं कर सकते, इसलिए अब हम "The Tiger Series" नाम से पूरा सीरियल लिखेंगे | आज के एपिसोड की तरफ बढ़े इससे पहले थोड़ी भूमिका हो जाए, दिल्ली के शकरपुर में गौरी शंकर निवास के बी-१० में रहने आया है टाइगर, इस कहानी में और भी किरदार है जैसे जैसे कहानी बढती जाएगी किरदार जुडते जायेंगे | पहला किरदार तो खुद टाइगर है, दूसरा मैं उल्लू जो रात भर जगता है और कुछ बनने मुंबई से दिल्ली आया हुआ है आप समझ ही गए होंगे उल्लू किस लिए अक्सर लोग मुंबई जाते है और मैं मुंबई छोड़ आया हूँ | तीसरा है चीता, चीता इसलिए की चीता ही पीता है और जिस रफ़्तार से ये सुट्टा पीता है कोई और चीता क्या पीता होगा, चौथे है भालू, ये शरीर से भालू नहीं है हरक...

इशारे लोकल के (मुंबई लोकल का अनुभव)

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जीतनी उम्मीद भरी निगाहों से आज हम उन्हें देख रहे थे, जीवन में पहले कभी किसी को न देखा था। उनका हर इशारा बड़ी सावधानी से नाप तोल रहे थे, कहीं तोलने तालने में बरती लापरवाही हमें भारी न पड़ जाए। नहीं नहीं आपकी शंका निराधार हैं, वयर्थ ही चिंता कर रहे हैं, हम किसी सुंदरी के मोह पाश में नहीं फसे। यहाँ चर्चा का विषय एक सज्जन हैं, और घटना मुंबई लोकल की। ये महानुभाव काफी देर से इशारे किए जा रहे थे, कभी बैग संभालते कभी झुकते कभी तनते। वास्तव में ये इशारे न थे, बस हरकतें भर थी जो अनायास ही हो जाती हैं। लेकिन लोकल के किसी खड़े मुसाफिर से पूछें, तो ये इशारे हैं इस में कोई दो राय नहीं। इशारा ये हैं की सीट खाली होने को हैं, पैरों को थोड़ा आराम नसीब होगा। बस यही एक आस जगाए रखती हैं लोगों को, वरना खड़ी नींद कोई मुश्किल काम नहीं। बात भी सही हैं जब तक खुद का कुछ दांव पे न लगा हो तब तक आप जागते नहीं। यहाँ दांव पे मेरी सीट थी, जी हाँ मेरी सीट पहले मैं चढ़ा था मेरा नंबर पहले। यही सीट हमें खड़ी निद्रा मे जाने से रोकती थी। कब कोई सीट खाली हो, और मैं झपटूँ ये सम्पत्ति हथियाने के लिए। ...

कहानी आईने की

नाम ! किसी ने रखा नहीं कभी, मुझे पुकारने की कोई जहमत भी नहीं करता, बस मेरे सामने आ अजीब अजीब हरकतें करने लगते, कोई केषूओ से खेलने लगता, तो कोई मुहँ चिढाने लगता हैं। अभी कल की ही बात हैं, एक सज्जन आए और अपने घर का दुखड़ा रोने लगे, हम तो उनको जानते तक नहीं, दूर की दुआ सलाम तक नहीं, अरे अपने परिचतो में रोते तो कुछ सलाह कुछ दिलासा मिलता । रोज का हो गया हैं ये सब, कोई न कोई तमाशा हमें झेलना ही पड़ता हैं, कुछ देर पहले एक प्रेमी जोड़ा आ धमका था, और आप तो जानते ही हैं इन नए परिंदों को, बादल छटे नहीं की पंखो की फड़फड़ाहट शुरु, हम तो समझाते समझाते थक गए, "मियाँ दीवारों के तो बस कान होते हैं, हमारी तो आंखें भी हैं, जरा तो लिहाज़ कर करो" पर कोई सुने तब ना । अरे अरे इसे न मिटाइए, दागा नहीं हैं ये, खुदा, ईश्वर आप जिसे भी पूजते हो, आपको उसकी कसम । हमारी बेरंग जिंदगी में एक यही लम्हा हैं जो हमें रंगों से जोड़ता हैं, हर रविवार शाम आती हैं, हमारे सामने ही सजती सवरती और जाते जाते एक चुंबन दे जाती हैं, आप लोग उसे किस्स कहते हैं शायद, थोड़ी दूर जाके पलटती हैं और...

मंगनी की साइकिल

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नमस्ते मैं राम प्यारी, अरे ऊ ठठरियां गाँव के बल्लू यादव हैं ना, उनकी साइकिल हूँ | यहाँ क्या कर रही हूँ ? जिला अस्पताल पे ! ऊ धिनू लोहार की औरत पेट से हैं ना, वहीँ धिनू ले के आए हैं हमे यहाँ, अभी अंदर गए हैं अकेली खड़ी थी सोचा आप से थोड़ा बतियाँ लूँ | ऊ का हैं की, बल्लू भईया के साथ सुबह दूध पहुचानें के बाद कौनों खास काम नहीं रहता हमकों, बल्लू भईया भी सज्जन आदमी किसीको माना नहीं कर पाते हैं | वैसे हमारे गाँव में तीन चार साइकिले और हैं, पर कोई दे तब ना, हम ही दौडती रहती हैं सबके साथ, चाहें केहुका इम्तेहान का नतीजा आना हो या केहुकी टरेन छुटती हो, अभी कल ही तो दौड़ी थी मटरू काका बीमार थे उनको लेके सदर अस्पताल | सही समझे ! हम ठठरियां गाँव का सार्वजनिक परिवहन हैं यानी मंगनी की साइकिल | बस कोई संकट में हो तो हमे ही याद किया जाता हैं, बहुत रुतबा हैं हमारा ठठरियां गाँव में | अरे देखो धिनू भईया आ रहे हैं, मुह काहे लटका हुआ हैं इनका, जरा पूछो तो जच्चा बच्चा ठीक हैं ना ! क्या लड़की हुई हैं, अरे सुनो सब लोग धिनू भईया के यहाँ लक्ष्मी हुई हैं, हम तो उसे लाडो बुलाएंगे और हाँ नयी चेन ल...