मेरे संग्रह से कुछ मेरी पसंदीदा कविताए
मेरी कुछ कविताए है जो मेरी ही कविताओ तले दब गई है
काशी ना छोड़ी जाए
दुनिया के लिए टिक टिक टिक
कब तक घड़ी रहे
थोड़ा खुद को ब्रेक दे
अब की बासुरी बने
कोई फुके फुक तो धुन हो जाऊ
नजर न आऊ शरमाऊ मै गाऊ
कोई फुके फुक तो धुन हो जाऊ
प्लेटफार्म नंबर दस वाली महिला
अबला का नाम हटाइए
सबला हो जाइए
दुनिया को बताइए
ये हथेलियाँ सिर्फ मेहंदी के लिए नहीं
इतनी ताकत ले आइए
मै चलने के लिए बना था मै उड़ न सका
मैंने कुछ ज्यादा ही
तेज़ी से कविताए लिखता गया और ये दबती गयी
अब ऐसा नहीं है की मै जान भुझ के इतना तेज़ लिख रहा था
क्या बताऊ जब से बनारस गया हु वहा की हवाओ में कुछ ऐसा है की
हर बात पे कविता हो जाती है
कुछ दिन हुए मैंने अपनी किताब 'सामर्थ्य' Pothi.com के माध्यम से प्रकाशित की
किताब का e-book version नीचे दिए गए लिंक पे निशुल्क उपलब्ध है
सामर्थ्य (e-book)
अगर आप किताब खरीदने के इच्छुक हो तो किताब प्रिंट ओन डिमांड में नीचे दिए लिंक पर उपलब्ध है किताब आप तक पहुचनें में ६-७ दिन लग जाएंगे
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मुझे जो पढ़ते है उनके लिए मेरे संग्रह से कुछ मेरी पसंदीदा कविताए
गर तुझको साधू होना है
छण भंगुर संसार है बेटा
मोह लगा के रिश्ता पाला
अंतिम में सब दुख ही देता
हर कोने से कष्ट कहानी
छोड़ दे कोना कर मनमानी
चल मेरे संग साधू हो जा
छण भंगुर संसार है बेटा
गर तुझको साधू होना है
छण भंगुर संसार है बेटा
मोह लगा के रिश्ता पाला
अंतिम में सब दुख ही देता
हर कोने से कष्ट कहानी
छोड़ दे कोना कर मनमानी
चल मेरे संग साधू हो जा
छण भंगुर संसार है बेटा
बनारस को जीना है तो आपको बनारस आना पड़ेगा
वरना कहानी से कविताओं से या चित्रों से आप सिर्फ जरा सा अनुभव कर सकते है
काशी ना छोड़ी जाए
तन को है रोटी कपड़ा
रोटी जहाँ ले जाए
मन तो बसा है काशी
काशी ना छोड़ी जाए
कब तक घड़ी रहे
थोड़ा खुद को ब्रेक दे
अब की बासुरी बने
कोई फुके फुक तो धुन हो जाऊ
नजर न आऊ शरमाऊ मै गाऊ
कोई फुके फुक तो धुन हो जाऊ
प्लेटफार्म नंबर दस वाली महिला
अबला का नाम हटाइए
सबला हो जाइए
दुनिया को बताइए
ये हथेलियाँ सिर्फ मेहंदी के लिए नहीं
इतनी ताकत ले आइए
मै चलने के लिए बना था मै उड़ न सका
हमारी शिक्षा व्यवस्था की खामी बताती कविता जो ये समझ नहीं पाई की हर बच्चा अलग है उसके गुण अलग है
मेरे इंजीनयरिंग जीवन की कहानी कहती कविता
दहेज़ प्रथा पे प्रहार करती कविता
हम रिश्तो में कैसे दरारे और दीवारे बढाए जा रहे है इस पे कविता
बचपन की दोस्ती को याद करती कविता
अपनी ज़िन्दगी हम दूसरो के लिए जीते जा रहे है कुछ अपने लिए भी जी ले
अच्छा किया पुराने पन्ने पलटवाने का...
ReplyDeleteधीरे-धीरे पढ़ती हूँ सभी...
अनु
Maine ek do padhi abhi. I will come back and read more. You write beautifully.
ReplyDeletedhanywaad anu ji, rachna ji
ReplyDeleteSo beautiful...every passage is impressive!
ReplyDeletethis is unfair shashi .. 3-3 ke combi bana kar dobara post kariye woh behtar rahe ga padne mein bhi aasani rahe gi , thanx:)
ReplyDeleteजैसा आप कहे अल्का जी
DeleteYou seem to have a good collection, will browse later :)
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