धुन्ध
न कोई अब फरियाद चले
कदमो के मेरे साथ चले
है यहा धुन्ध है वहा धुन्ध
घेरे मुझको हर जगह धुन्ध
हम धुन्ध के आगे चले
या धुन्ध के पीछे चले
रिश्तो मे घर मे खालीपन
ये धुन्ध बड़ी चली आती है
दिन सहमा सहमा रहता हू
मुझको हर शाम डराती है
न कोई रिश्ता सच्चा है
माटी की मूरत बन बैठे
अब की मुस्काने गायब है
सब कच्चा कच्चा कच्चा है
है धुन्ध भरी सब नियत मे
मतलब पे ये बहलाए
मतलब पे ये भटकाए
कोई ना मुझको चाहे
दफ्तर से घर तक भरे पड़े
दानव है सब बड़े बड़े
प्रेम दिखे अब डायन सी
रिश्तो मे अब बीमारी है
मै धीरे धीरे चलता हू
ये धुन्ध कभी छट जाएगी
सूरज भी आयेगा ऊपर
मुझको न शाम डराएगी
: शशिप्रकाश सैनी
ek dhund se aana hai ek dundh mein jaana hai , :)
ReplyDeletemust say beautiful !
धन्यवाद अल्का जी
Deleteवाह....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
है धुन्ध भरी सब नियत मे
मतलब पे ये बहलाए
मतलब पे ये भटकाए
कोई ना मुझको चाहे ..
लाजवाब..
अनु
Abh tho sab dundhla dikhne laga, SPS! :) Yeh aapki kavita ki asar hai:)
ReplyDeleteकविता पढ़ने का धन्यवाद
Deleteवैसे ज़िंदगी मे धुंधला न दिखे तो ही अच्छा