हर दशेहरा जलाया है






मुझे अब कुछ नहीं कहना 
मुझे अब कुछ नहीं करना 
की अब पतवार छूटी है 
नदी के संग है बहना
एक साथी की चाहत ने 
मुझे क्या क्या दिखाया है
मुझे इंसा नहीं छोड़ा इतना तपाया है 
कभी पत्थर बनाया है 
कभी नज़रो गिराया है 
ये दस्तूर दुनिया का 
मुझे न रास आया है
जब उसने आँसू बहाया है 
लोगो ने उसे सीता बताया है 
उसके पाप हुए माफ 
मेरी सजा ये रही 
 मुझे हर दशेहरा जलाया है 


: शशिप्रकाश सैनी

Comments

Popular posts from this blog

खट्टी मीठी नारंगी

SHER O SHAYARI

मांगो वत्स क्या मांगते हो