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अरमान दिल घुले भी कही हम पिघल न जाये

अब हाथ ना लगाओ कही आग जल न जाये  अरमान दिल घुले भी कही हम पिघल न जाये  रहते सुस्त कब तक तुम रफ़्तार तो बढाओ कब तक चलोगे धीमे फुरसत निकल न जाये  दुनिया बहुत हैं शातिर सब खेल जानती हैं अब तो नजर उठाओ कही ख्वाब छल न जाये दिल में इश्क़ छुपा जो उसको जुबाँ पे लाओ  कही लफ्ज ढाई कहते उम्र ढल न जाये जब होश मय का तारी सारा बयाँ बताओ नशा कम हुआ तो "सैनी" संभल न जाये  : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

अब छुपा लो बात कल बात छुपाये न बने

रौशनी नाराज रही अब तक साये न बने  ना अँधेरा समझे बात मेरी निभाये न बने  घाव माथे तक फैले नजर न आने लगे अब छुपा लो बात कल बात छुपाये न बने  फिर वही रोना रहा दिल की कोई कीमत नहीं हकदार कोइ आ पड़े हक़ फिर जताये न बने चाहू कितना मगर होठ हिलते ही नहीं  दिल इतना दुखा और मुस्कुराये न बने  किसने चलाया पीठ पे खंजर मालूम हैं हम को भरोसा रिश्तो से उठ जाए नाम बताये न बने अब तो चलो की छोड़ दो कुछ यहाँ रखा नहीं  रूह छोड़ेगी साथ जब कब्र से जाये न बने एक ने चाहा नहीं तो दूसरी तो है अभी "सैनी" और गिनने चलो तो गिनतियाँ गिनाये न बने  : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

पैसा पैसा जो जुटाया था कभी घर के लिए

पैसा पैसा जो जुटाया था कभी घर के लिए महंगाई मार गई कम पड़ता है अब कबर के लिए बहोत जोड़े बहोत तोड़े जुटाए शब्द कई बेबहर हम तरसते रहे बाबहर के लिए खुश्बू एक ख्वाब रही जहन में आई नहीं घर बीके नीलाम लोग हुए उस इतर के लिए उसने तरासे थे उतारी थी जान पत्थर में धूल खाते रहे तरस गए पारखी नजर के लिए चिंगारी उठी आग हुई राख हुआ सब कुछ “ सैनी ” क्या लाए थे क्या ले जाएंगे उस सफर के लिए : शशिप्रकाश सैनी 

उसको डर है कही आग न हो जाए कल

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उसको डर है कही आग न हो जाए कल कुर्सी जले फिर राख न हो जाए कल चिड़िया जो चुचु करे ट्वीट बस कर पाती थी चोच पंजो हक दबोचे बाज न हो जाए कल लाठी चली बरसात की इंसाफ की जब बात की आज जो उंगली उठी हाथ न हो जाए कल सत्ता डरी न भीड़ से न नारे लगाती रीढ़ से पक्ष था विपक्ष था उसकी खुद की जमात थी आम जनता थी नहीं ये आम सी ही बात थी पुलिस लाठी ले इशारे करे की चुप हो जाइए मुखिया जब गूंगा रहे उसे जनता गूंगी चाहिए अब हवा युवा हुई और थपेड़े देने लगे “ सैनी ” छप्पर उड़े माटी करे तूफ़ान न हो जाए कल : शशिप्रकाश सैनी

दिल की बात चेहरे ने बताई थी

दिल की बात चेहरे ने बताई थी लोग पूछते थे रात कौन आई थी जाने किस तरह से वो मुस्कुराईं थी दिल पत्थर था धड़कने उसने धड़काई थी कोई अप्सरा थी या हाथो में जादू भरा दिल में खुदा था जैसे हाथों में खुदाई थी  कुछ यू था असर बदन तरबतर था मन तरबतर  रात प्यार की बरसात हुई वो बदलीया लाई थी  "सैनी" वो हस्ति थी बस खुशियाँ बरसती थी मालूम न था किस्मत की लकीरों में अब जुदाई थी : शशिप्रकाश सैनी

हम चौपाल के कवि

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चौपाल के कवि शिपिया टटोलता हु मोतियों की आश में काव्य के मोती मिले जाने किस लिबास में मुक्तक हाइकु दोहा हो हास्य रंग भिगोया हो है रस बरस रहा क्यों बैठे जी प्यास में अतुकांत तुकांत ग़ज़ल करे कोई नयी पहल करे भविष्य काव्य का झाके आके देखे इतिहास में हास्य रस है वीर रस और कही सृंगार रस आइये पढ़े सुने भरे मन के गिलास में हम चौपाल के कवि हर ख्याल के कवि अब की चौपाल बिठानी ले आइये पास में मोतियों की माल आप बिन अधूरी है "सैनी" कहता है ये पुरे होशो-हवास में : शशिप्रकाश सैनी                        चौपाल के कवि FB page

अपनी कहानी को कहानी कहे कैसे

अपनी कहानी को कहानी कहे कैसे आगाज़ भी नहीं है अंजाम भी नहीं कैसा नसीब है मोहब्बत जहा मयखाना हुई इतनी बिकी की मेरे हाथों में एक जाम भी नहीं उसकी तस्वीर अब तक मेरी किताबो में है बिना देखे दिल को मिलता आराम भी नहीं बिकने को तैयार था दिल-ए-बजार में "सैनी" कोई खरीदता नहीं देता सही दाम भी नहीं : शशिप्रकाश सैनी 

मेरे दरवाज़े नहीं खुले हर किसी के लिए

मेरे दरवाज़े नहीं खुले हर किसी के लिए जो मौत से डरता रहे लड़ेगा क्या ज़िंदगी के लिए अंधेरे से निकलने पे मालूम होता है हर  कीमत कम है रौशनी के लिए न तेवर दिखाओ न अकडों देवता बनकर तो तुम्हे भी चाहिए लोग बंदगी के लिए धूप में तपे ठंड से ठिठुरे रोटी जुटाने में बिक गए लोग गाड़ी मोटर कोठी के लिए जिस शहर में रहता है बड़ी रोशनी है “सैनी” तारे देखे जमाना हो गया तरस गए खिड़की के लिए   : शशिप्रकाश सैनी 

ज़िंदगी सुबह थी हम जिधर गए उधर गए तुम

ज़िंदगी सुबह थी हम जिधर गए उधर गए तुम रात होने लगी साथ छोड़ गए अंधरे से डर गए तुम तुम में अरमा थे बसे सासे थी ज़िंदगी तुमसे थी हार बाहों का मोतियों का नहीं फिर क्यों बिखर गए तुम मै मोहब्बत पूजने लगा था इश्क मजहब हो गया था बावाफई का सिला बेवफ़ाई मिला नज़रों से उतर गए तुम जरुरत पडने पे सर झुकाना तेरा आसू मतलबी बहाना तेरा आवाज़ में नरमी नम आँख देख दुनिया समझती सुधर गए तुम जब तुने मुह मोड़ा था “सैनी” ने धड़कना छोड़ा था जब वफ़ा की चिता जली उसके लिए मर गए तुम : शशिप्रकाश सैनी 

शाम का सूरज है वो कोई पड़ता काम भी नहीं

शाम का सूरज है वो कोई पड़ता काम भी नहीं मतलब निकल गया है कोई दुआ सलाम भी नहीं उनका ही नहीं खबर रखते थे पुरे खादान की शोहरत की इमारत बची नहीं जहन में नाम भी नहीं मतलब की यारी पैसे से मोहब्बत यही फितरत बटुए की बिगड़ी हालत पे कोई पैगाम भी नहीं सत्ता का नशा है मदहोश है नेता तेवर बिगड चुके न धर्म न जात फिजूल मुद्दों में बटी आवाम भी नहीं उसके सामने जाम का नशा था कम “सैनी” उसके बगैर कोई शाम शाम भी नहीं : शशिप्रकाश सैनी 

एक से दो से हज़ार से

एक से दो से हज़ार से कब तक खेलिएगा एतबार से रातो की रंगीनियां होंगी जलवा होगा बाज़ार में आप भी होगए है कारोबार से बस पल भर की खुशी है वो भी बिकी है क्यों डरते है इतना आप दिलदार से है मानते धोखा हुआ था जब आपने दिल दिया था रूठना था हक तुम्हारा अब छोडिये गुस्सा संसार से छेडिए न जख्म जख्म भर जाएंगे “सैनी” दिल लगाइए फिर देखिए क्या होता है प्यार से : शशिप्रकाश सैनी

ऐ खुदा भूलने का हुनर दे की हम उसे भुला दे

ऐ खुदा भूलने का हुनर दे, हम उसे भुला दे बावफाई का सिला बेवफ़ाई, उसकी यादे भी जला दे बेवफाई की दुनिया ये, दिल लगाना हैं गुनाह या खुदा रहम कर बन्दों पे, जीने का हौसला दे जीतनी भी सुन्दर काया, आँखों में सब माया ये इश्क की जादूगरी, अच्छे अच्छो को बरगला दे दिल खेल हैं, आप खिलवाड़, वो खिलाड़ी यारो को भिड़ा दे, बरसों की दोस्ती हिला दे रौंदे है दिल, मिट्टी में अरमा रौंदे है बेवफ़ा को बेवफ़ा मिले ये सिला दे वो बेवफ़ा थी लौट के आनी नहीं “सैनी” मयकदा चल मय की मयकशी में उसे भुला दे : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

जिस बालक को लाया गया था थाने में

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जिस बालक को लाया गया था थाने में  सुनते है पकड़ा गया था रोटी चुराने में पड़े घुसे पड़ी लाठी उधेडी थी खाल  पूरा सिस्टम लगा उसे मुजरिम दिखाने में  जो खुनी है जो इज्ज़त के लुटरे है  पार्टिया लगी है उन्हें संसद बुलाने में  चली कुर्सीया चले जूते चले चप्पल  नेता लगे है संसद को बीहड़ बनाने में  : शशिप्रकाश सैनी

सीने में अब तक कोई क़रार न मिला

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सीने में अब तक कोई क़रार न मिला प्यार पर लिखते रहे पर प्यार न मिला दुनिया का दस्तूर न रास आता हमको एतबार के बदले एतबार न मिला जिसके गुनाह की सजा हम काटते रहे बहुत तलाश किया पर वह गुनाहगार न मिला बस रूश्वाईयो का होकर रह गया शिकार "सैनी" दिल को दिल्लगी नहीं किसी मोड़ पे इंतजार न मिला : शशिप्रकाश सैनी

हम दुनिया की निगाहों से इस कदर डरते रहे

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हम दुनिया की निगाहों से इस कदर डरते रहे आईने मैले थे और हम चेहरा साफ़ करते रहे उसके बज़्म में दुनिया दीवानी ऐसी थी जवानी एक हम भी उसकी हर अदा पे मरते रहे वो देते गंगा नहाने की सीख दुनिया को और  छुप-छुपा के पाप का घड़ा भरते रहे दुनिया से लड़कर लाया तक़दीर हाथों में “सैनी” मगर याद में उसकी लम्हा लम्हा बिखरते रहे : शशिप्रकाश सैनी 

बात दिल की दिलों में दबी रह गई

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बात दिलों की दिलों में दबी रह गई ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई उसने जलाया भी नहीं उसने बुझाया भी नहीं मोहब्बत आग ऐसी आत्मा अधजली रह गई जब तक पत्थर था तो मंदिर का देवता हीरा हुआ हाय कीमत मातमी रह गई पड़ोस की खुबसूरती जब खिडकियों पे आये जन्नत जमी हुई साँसे रुकी की रुकी रह गई याद उसकी अब तक हैं सीने में “सैनी” चेहरा दिल में आँखों में नमी रह गई : शशिप्रकाश सैनी

दिल को लगी अब की मोहब्बत की बीमारी हैं

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दिल को लगी अब की मोहब्बत की बीमारी हैं बटुआ कराहे हैं मेरा की तेरा इश्क बड़ा भारी हैं कभी लूटे हैं KFC में कभी आए MacD के काम मेरी महबूबा बड़ी भुक्कड़ हैं ये जनहित में जारी हैं सिनेमा में लुटाती हैं प्यार जैसे हो मंदिर के द्वार कभी रणबीर की दीवानी कभी इमरान की खुमारी हैं Bike हैं मेरी त्रसत हमेसा रखती हैं उसको व्यस्त सुना है पेट्रोल के मुनाफे में लडकियों की हिस्सेदारी हैं बहोत कराती हैं खर्च बटुए को लगा हैं मर्ज इस बार तेरी अच्छी Bad Debt की तैयारी हैं Inflation हैं तगड़ा छोड़ दे रुपये से झगडा "सैनी" मोहब्बत इश्क प्यार इनदिनों बड़ा हानिकारी हैं : शशिप्रकाश सैनी