माटी कर चला
किस्मत हैं खफा क्या मेरी खता जख्मो के सिवा कुछ भी न मिला पत्थर कर दिया दिल जो था मेरा जब धड़कन बढे मिलता फासला माटी हैं माटी हैं माटी हैं अरमा माटी कर चला अपने दर्मियां बदला क्या नया ये कैसी हवा चुभती हैं बता ऐसा क्या हुआ इतनी दूरियां जब धड़कन बढे मिलता फासला माटी हैं माटी हैं माटी हैं अरमा माटी कर चला इश्क-ए-रास्ता दर्द-ए-मंजिले जब बस्ता हैं घर लगे दुनिया की नज़र आँखों से बहा गम ही गम मिला जब धड़कन बढे मिलता फासला माटी हैं माटी हैं माटी हैं अरमा माटी कर चला फिर जब दिल हुआ धड़कन ने कहा आँखों को दिखा झूठे ख्वाब ना सब झूठे जहाँ अब ना हौसला जब धड़कन बढे मिलता फासला माटी हैं माटी हैं माटी हैं अरमा माटी कर चला : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध Click Here //