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माटी कर चला

किस्मत हैं खफा  क्या मेरी खता जख्मो के सिवा  कुछ  भी  न मिला पत्थर कर दिया  दिल जो था मेरा  जब धड़कन बढे मिलता फासला माटी हैं माटी हैं  माटी हैं अरमा  माटी  कर चला  अपने दर्मियां बदला क्या नया  ये कैसी हवा चुभती हैं बता ऐसा क्या हुआ इतनी दूरियां जब धड़कन बढे मिलता फासला माटी हैं माटी हैं  माटी हैं अरमा  माटी  कर चला  इश्क-ए-रास्ता दर्द-ए-मंजिले जब बस्ता हैं घर लगे दुनिया की नज़र आँखों से बहा  गम ही गम मिला  जब धड़कन बढे मिलता फासला माटी हैं माटी हैं  माटी हैं अरमा  माटी  कर चला  फिर जब दिल हुआ  धड़कन ने कहा आँखों को दिखा  झूठे ख्वाब ना  सब झूठे जहाँ  अब ना हौसला जब धड़कन बढे मिलता फासला माटी हैं माटी हैं  माटी हैं अरमा  माटी  कर चला : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

न पंख बचे न पखेरू

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न पंख बचे न पखेरू  मै पिंजरा प्रेम बना बैठा  अब अंखिया कैसे फेरु  उससे न अब ध्यान हटे  न दिन कटता न रात कटे  जागू तो उसको चाहू  और सपनो में भी हेरू  न पंख बचे न पखेरू  गर पिंजरा उसने खोल दिया  उड़जा ऐसा बोल दिया  बंधन प्रेम बंधा है ऐसा  उड़ के कहा मै जाऊ  और जो उड़ जाऊ भाप मै बन के  बादल बन के घेरु  न पंख बचे न पखेरू  : शशिप्रकाश सैनी

अबकी मै न खेलूं होली

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रंग कैसे लगाएं कोई जादू बताए खेले किस रंग से हम होली तू पूरी रंगी आई गोरी किस रंग में यूँ लाल हुए गोरी तेरे गाल हुए एक दिवस बस मेल हुआ बिछड़े तो कई साल हुए मुझसे खेल बस आंखमिचोली अबकी मै न खेलूं होली तू रंगी हुई यूँ आई कुर्ती पे रंग है हरा चढ़ा दुपट्टा पीला पुत्वाई किस रंग से अब रंगू तुझे तेरी रंगी हुई परछाई न सूरत कर अब भोली अबकी मै न खेलूं होली अबकी जो मुझे याद किया हफ्तों महीनो बाद किया कब से बोल नहीं तू बोली बस खेले आँखमिचोली अंखियां यू तू दिखला ना रंगों से तू यूँ ढकी हुई लगे जरा न भोली होली तेरी कब की हो ली अबकी मै न खेलूं होली : शशिप्रकाश सैनी

पत्थर हो जाती हैं

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चेहरे से मुस्कान गई न बोले न हँसती हैं नैना ऐसे पथराए जैसे वीरानी बस्ती हैं छूने से पत्थर हो जाए बात न माने मेरी हाथ लकीरों से खेल ये प्यार की हेराफेरी नई नई ये बात नहीं अक्सर हो जाती हैं छूने से क्या हो जाता पत्थर हो जाती हैं चाहे कुछ हालात रहे मेरे छूने से जज्बात जमे रिश्तों से सब गर्माहट फुर्र(छू) हो जाती हैं नई नई ये बात नहीं अक्सर हो जाती हैं उससे बात बढ़ाऊ क्या दिल के हालात बताऊ क्या गर बोलू दो बोल कभी तो पत्थर हो जाती है नई नई ये बात नहीं अक्सर हो जाती हैं न कोई दिल तक आ पाए हाथों इश्क फिसल जाए धड़कन खो जाती है रिश्ता सब मर जाता हैं पत्थर हो जाती है नई नई ये बात नहीं अक्सर हो जाती हैं : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

साथी हर कदम वंदेमातरम

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हो रही सुबह छट रहा धुआँ जग रहा  युवा चलते साथ हम वंदेमातरम वंदेमातरम भाषा भेद ना जाती है कहा दूरी अब मिटा साथी हर कदम वंदेमातरम वंदेमातरम पंख खोल ले स्वास यू भरो मै से हम करे उड़ना है धरम वंदेमातरम वंदेमातरम नभ हद में हो यू आगे बढ़ो जिद पूरी करो टूटे हर भरम वंदेमातरम वंदेमातरम धूप न लगे चूल्हा हर जले अब रौशनी करे   न आँसू ना हो गम वंदेमातरम वंदेमातरम खेले हर खुशी जाँच कर नहीं कोख की कभी ले ये अब कसम वंदेमातरम वंदेमातरम गाँव भी बढ़े शहर भी रहे हक को हक मिले रहे कैसे कोई कम वंदेमातरम वंदेमातरम : शशिप्रकाश सैनी

वो मेरे आस पास है

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हवा ये कह रही सुनो वो मेरे आस पास हैं उसका आना यूँ खास हैं और जाना उदास हैं हवा ये कह रही सुनो वो मेरे आस पास हैं हर पल मुझसे खेल ये खेले मुझकों नादा कहती हैं आँखों पे पट्टी हैं बांधी पास तू आ जा कहती हैं उसका आना यूँ खास हैं और जाना उदास हैं हवा ये कह रही सुनो वो मेरे आस पास हैं वो बोले हौले से तुम कितने हो भोले से इस आँख नजर का क्या करना जब दिल की भाषा आती हैं ध्यान लगा सुन तो भोले धड़कन मेरी गाती हैं तुझको राह बताती हैं उसका आना यूँ खास हैं और जाना उदास हैं हवा ये कह रही सुनो वो मेरे आस पास हैं मिल जाए तो मिल जाए अब की उसको छोडू ना कस के पकडूँ बाह तेरी मै बात जुदाई छेडू ना दिल को पूरा अहसास हैं तू कितनी कितनी  खास हैं हर पल रह तू पास मेरे तेरा जाना उदास हैं : शशिप्रकाश सैनी

ठंडी बड़ी घमंडी

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कमरों में ही पड़े रहे न आश जगाए ठंडी बिस्तर की लाचारी देखे तो घुस जाए ठंडी मौके की ताक में बैठी ठिठुरन ले आए ठंडी ठंडी बड़ी घमंडी गुसलखाने में गुड गुड गोते पानी की मनमानी हर दिन वही कहानी तीन दिन में एक बार हफ्ते में होते दो पानी से जी रोज रोज न लड़ना है मुझकों चाहे जो समझों कांप कांप के कितना कांपे खूब डराए ठंडी ठंडी बड़ी घमंडी महल में लाइट बत्ती हीटर है संपत्ति ठंडी की न चल पाए न पास ही जाए ठंडी न हीटर न बत्ती न ठिठुरन को आपत्ति गर निर्धन दम्पत्ति झोपड़ जो ये देखो तो हर झोपड़ में जाए गलन गलन हर कोना हर कोने में ठंडी ठंडी बड़ी घमंडी अकडो जिससे जब चाहो ठंडी से न अकडो ठंडी ठिठुरन दे जाए अकड़न देगी ठंडी कांप कांप के हालत भाई हो जाएगी गंदी ठंडी बड़ी घमंडी : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

मेरे दिल की गिलहरी

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रोके रुके ना ना मानें मेरी ठहरी दिल की गिलहरी नज़रे बचा के देखे अंखियां चुरा के देखे छुप के छुपा के देखे मेरे दिल की गिलहरी धड़कन बहाना सारा दिल ये दिखाना सारा सब कुछ बताना यारा तेरा हो जाना यारा तेरे अलावा कोई भाए जरा ना कब से कही री मेरे दिल की गिलहरी छुप छुप के आके देखे बाते बना के देखे बाते बहाना चाहे पास ये जाना चाहे दिल में सामना चाहे ठहरी दिल की गिलहरी मेरे दिल की गिलहरी पास ये जाना चाहे दिल में सामना चाहे तुझको बताना चाहे आए तो आए आड़े आड़े जमाना आए धड़कन के बल पे फुदके रहती न डर के छुप के तेरा मै तेरा होके मेरी तू मेरी होले रोके रुके क्यों क्यों माने तेरी धड़कन तो धड़कन है जी दिल की चले बस मर्जी डाली से डाली कूदे दिल का पाता जी पूछे कब तक छुपा के देखो बाहों में आके देखो दिल की गिलहरी मेरी दिल की गिलहरी तेरी डिंगे लड़ा के देखो रोके रुके ना ना मानें मेरी ठहरी दिल की गिलहरी : शशिप्रकाश सैनी

अंधेरा घिर आए

अंधेरा अंधेरा अंधेरा घिर आए चले चल वापस चल कब से दिल ये कह रा है मन सबसे ही गहरा है अंधेरा अंधेरा अंधेरा घिर आए चले चल वापस चल जिस जिस पे ना बस चले उस पे  केवल हँस चले रोने की इच्छा नहीं हम तो केवल हँस चले अंधेरा अंधेरा अंधेरा घिर आए चले चल वापस चल इतना ना खो जाइए कुछ से कुछ हो जाइए रात ऐसी हो चले दिन से फिर छुपाना पड़े अंधेरा अंधेरा अंधेरा घिर आए चले चल वापस चल तुफा है कश्ती भी है जंगल है बस्ती भी है देखो सब कुछ है यही   मन से गहरा कुछ नहीं अंधेरा अंधेरा अंधेरा घिर आए चले चल वापस चल भूले भटके आए हम घर को कैसे जाए हम कोई है अब साथ ना हाथों अब है हाथ ना अंधेरा अंधेरा अंधेरा घिर आए चले चल वापस चल : शशिप्रकाश सैनी

चल संडे मना

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ऑफिस की मजबूरियां  ऑफिस छोड़ आ  घुट घुट के जीना है क्यों  चल संडे मना  दौड़े दौड़े थक गए  रुक जाए जरा  मै गाऊ गाना नया  धुन तू भी सुना  बाइक कब से कह रही  चल हाइवे पे चल  दौड़े सरपट हम ज़रा  कर थोड़ी हलचल  चल थोड़ा माहोल कर  ले नंबर ले कॉल कर  जेंटल मैन बनना नहीं  फिर पंटर बुला  मछली सारी मारने  पोखर मै चला  कीचड़ में खेला कूदा  बच्चा हो गया  धड़कन कब से कह रही  धड़कन की भी सुन  चल गाएं गाना नया  धुन चल तू भी बुन  : शशिप्रकाश सैनी