नानी मेरी प्यारी थी
आधुनिकता का चोला
तो मैंने
भी ओढा था
पर याद
है मुझे
नानी ने
बोला था
प्रयाग
जाना है
संगम
नहाना है
अयोध्या मथुरा
वृन्दावन
जाना तू
जब भी मिले मौका
गंगा नहाना तू
आज नानी
नहीं
आस्था की
बाते
अब किसी ने बतानी नहीं
नानी
बहुत जल्दी चली गई तू
अभी तो
बहोत सीखना था
क्या है
आस्था
मेरे
बच्चो को बताना था
याद है
तूने मांगी थी साड़ी
मेरी
पहली तनख्वा की
ऐसे कैसे
चली गयी
बिना लिए
सड़ी अपनी
शशि तो
शहरी है
सयाना है
पर अब भी
तेरा रिंकू नादान है
दिल से
सोचता है वो
दुनिया
की मुश्किलों से अनजान है
मुझमे जो
भी आस्था है
ईश्वर के
प्रति श्रद्धा है
सब नानी
ने दी है
वो राम
राम कह ताली बजवाना
श्री राम
की कथा सुनना
नीव मेरी
मजबूत की
आदर्श
सत्य की शिक्षा
नानी ने
दी
अगर
आधुनिकता के सामने संस्कार टीके है
नानी तू
ही वजह है
शशि
रिंकू पे हावी नहीं हो पता है
दुनिया मे सबसे न्यारी थी
नानी मेरी प्यारी थी
नानी याद
है
वो रसोई
से पूरी चुराने वाला
चुपके से
खाने वाला
बाल्टी
से सारे आम खा जाता था
इल्जाम
दूसरों पे लगता था
मांगता
था रुपये तुझसे
गुरु
हलवाई के जहा जाऊंगा
मै आज
रबड़ी खाऊँगा
आज तेरा
वही नटखट चटोर रिंकू
शशि है
कहने के लिए कवि है
बड़ी बड़ी
बाते करता है
रोज़
कविताए करता है
पर
दुनिया से छुपता है
रिंकू
बड्बड़ता है लय ताल मे
कविता
सारी है इसी के कमाल मे
: शशिप्रकाश सैनी "रिंकू "
बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteनानी होती ही प्यारी हैं...
कभी हमने भी लिखी थी एक कविता अपनी नानी पर...
बहुत अच्छा लगा इसको पढ़ना..
अनु
जी अनु जी नानी बचपन की प्यारी याद है
Deleteधन्यवाद