मन के लिए कविता है
वो पूछते है
कविताओं में क्या है
पैसे है ईनाम है
या नाम है बहुत
रोटी मिलेगी घर चलेगा
चूल्हा जलेगा
भूख मिटाएगी कविता
या प्यास बूझाएगी कविता
प्रेयसी के लिए तोहफे मे
क्या लाएगी कविता
मैं मानता हूँ
ये रोटी, दाल नहीं देगी
तन पे कपड़ा
पसीना पोछने को रुमाल नहीं देगी
वैसे तो मैं भी कमा लेता हूँ
चार पैसे
दौड़ता हूँ खटता हूँ
धूल खाता हूँ
बरसात भीगता हूँ
दुनिया समझती है मशीन मुझे
सुबह मशीन बन
पेट की खातिर
ईंधन जुटाता हूँ
रात कविता करता हूँ
इंसान हो जाता हूँ
जैसे तन के लिए रोटी सुविधा है
मन के लिए कविता है
: शशिप्रकाश सैनी
//मेरा पहला काव्य संग्रह
सामर्थ्य
यहाँ Free ebook में उपलब्ध
दुनिया समझती है मशीन मुझे
ReplyDeleteसुबह मशीन बन
पेट की खातिर
ईंधन जुटाता हू
रात कविता करता हू
Moving lines, Shashi...Very well put!
आपका आशीर्वाद मिला कविता सफल हो गयी
DeleteHi SPS! Insaan zinda rehta hai roti se..jeeta tabhi hai jab man mein kavita ke liye jagah hai - You brought that out very well! (I substitute 'Arts' in general for kavita!)
ReplyDeleteधन्यवाद सुरेश जी
Deleteआप ने सही कहा ये मेरी लिए कविता है
किसी और के लिए कुछ और होगी शौक आदमी को ज़िंदा रखता है
Hi,
ReplyDeleteYour words touched my heart :)
आप ने तारीफ की दिल गदगद होगया
Deleteशुक्रिया ग़ज़ला जी
bahot acchi rachna
ReplyDeleteधन्यवाद कपिल जी
Deleteabsolutely loved this one!! i don't understand poetry but i could feel the emotion here.
ReplyDeleteधन्यवाद देबाज्योति जी
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