क्या खूब बड़प्पन की सजाए
क्या खूब बड़प्पन की सजाए
हम हँसे भी ना रो भी न पाए
बच्चो मे बच्चा बने तो बचकाना कहे
बरसात से खेलु तो दीवाना कहे
जब भी समझदारी की लकीर पार करे
लोग छीटा कसी तानो से वार करे
ऐसे समझदारी नहीं
जहा इंसा इंसा को चाहे तो बुरा है
वो पत्थर पूजे की देवता है
ऐ खुदा इतनी खुशनसीबी दे
अक्ल के मामले थोड़ी गरीबी दे
साँप गुज़र जाए
हम लकीर पीटते रहे
इतनी अक़्ल न दे
हर आदमी अपने आप मे
इतना बड़ा न हो जाए
खुद को पूजने लगे
कही खुदा न हो जाए
: शशिप्रकाश सैनी
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteकाश के हम फिर बच्चे बन पाते....सच्चे बन पाते....
अनु
Hi SPS! Jis din hum apne man ki awaaz ko doosron ki shor mein doobne na den us din hum bachche ho hi jayenge.
ReplyDeleteएक दम सही कहा सुरेश जी
Deletekuch to log kahen ge logon ka kaam hai kehna... bahut khoobsurat ,aise hi likhte rahiye .......
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