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खाली फुकट के तिवारी जी

आज आँख खुली तो पाया हमारे फ़्लैट में खाली फुकट के तिवारी जी घूम रहें थे, ये दिन भर खाली रहते है कौनों काम नहीं इस लिए इन्हें खाली कहा जाता है और फुकट इस लिए कि दिन भर फुकट का सुट्टा ढूंढते रहते है, और हम जी इस लिए लगाए दिए कि जब से आप पार्टी अस्तित्व में आई है कौन जानता है कौन खाली आदमी कब मंत्री बन जाए | इनका पसंदीदा काम है दिन भर बिरहा सुनना घाघरा चोली वाले भोजपुरी गाने इनको सबसे प्रिय है और जब हम से छत पे भेट जो जाती है तो हमे भी जबरदस्ती सुना देते है, ये कहते हुए देखे कवि जी बम्बई में रहते हुए भोजपुरी भूल तो नहीं गए | आज का किस्सा ये है कि आज ये हमारी अम्मा के भेष में आग गए और बोले “कवि जी शादी काहे नहीं कर लेते हो अब तो तुमारी दाढ़ी भी पकने लगी है, ये ही सही बकत है कर लो बाद में कौनो नहीं मिलेगी” अभी बस सो के उठे ही थे और ये वज्रपात मन तो किया इन्हें दंडवत प्रणाम करे फिर सोचे कि हमारा दंडवत जिसे लग जाएगा बिचारा प्रणाम करने लायक नहीं रहेगा, फिर इनपे आगई हमको दया, जवान जुवान लड़का है अभी से इनका प्रणाम खराब कर दिये तो जिंदगी भर कुछ न कर पाएंगे, हम नजर अंदाज किए और सोच...

रूपया चला विदेश

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Photo Courtesy: TOI क्या खूब ये बाज़ार है अगर माँ को है पूजना  पिता के लिए प्यार है बस एक डे का इंतज़ार है चाकलेट केक और बूके  प्यार के पैमाने हुए  ये याद नहीं कब लिए  थे आशीर्वाद आखिरी  कब पैरो पे झुके झुकना शान नहीं  अकड़ना मान है नया दौर है पैर छुना अपमान है कहते है आपा धापी में वक़्त निकालना  नामुमकिन  इसलिए हर रिश्ते पे दिन  पूछते है इसमें पाप क्या बाप सिर्फ फादर डे बाकी दिनों बाप  ना  माँ के लिए मदर डे बाकी  सब सन्डे सिस्टर ब्रदर दादा दादी अब किसको कब प्यार दो छीन कर तेरी आजादी कंपनिया करेंगी तय  कार्ड बीके केंडल बीके लाली  और सेंडल बीके  भेड़  चाल   हम चल रहे बिक जाए सारा देश रूपया   चला विदेश  कोला और बर्गर हुआ  KFC  देगा बांग ले मुर्गे की टांग  तेरी जबे लुटने  आए शेर सवार तू बड़ा व्यापार खर्चे बड़े तू कर पर जब भी तू खर्चा करे इनकी जेबे भर...

क्या किया जाए

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फेसबुक की फ्रेंड लिस्ट में न हुई है आइटम सेट चैट ग्रूप में सब बेढंगे  करे हम किस से चैट क्या किया जाए क्या किया जाए ऑफिस में है बास की गली सर में है खटपट टारगेट सारे दूर हुए न चित मेरी न पट क्या किया जाए क्या किया जाए लोकल की है धक्कामुक्की ट्रेन भरी ठस ठस कंडक्टर की पकपक सुनते बेस्ट में भी बेबस क्या किया जाए क्या किया जाए ऑफिस में पूरी कडकी है सौ में दस ही लड़की है आँख कही पे फड़की है आग कही ये भड़की है बंद मेरी क्यों खिडकी है क्या किया जाए क्या किया जाए मूवी मल्टीप्लेक्स की शान हर वीकेंड पे जाती जान लो बजट मै पिक्चर डार्लिंग मेरी स्टार बड़ी कैसे दू कितना दे दू डिमांड बहुत है करती जी क्या किया जाए क्या किया जाए सिंगल का दंगल हू मम्मी कहती मैरेज कर पाप कहते अब घर भर पोते और पोती दे दे दाद और दादी कर दे क्या किया जाए क्या किया जाए जब से ई एम् आई बड़ी तनखा है सरमाई पड़ी दाल रोटी और दाना घर लाना कैसे लाना पेट्रोल की आग बढ़ी क्या किया जाए क्या किया जाए ...

सेल्फ प्रमोसन

जब तक कवी था बस लिखता था डायरी में रहता था दिल की बात दुनिया से न कहता था बस लिखता था अब मेनेजर होने जा रहा हू पबलिसिटी प्रमोसन समझता हू कंटेंट तो ज़रूरी है पर दिखोगे नहीं तो बिकोगे कैसा ये भी मज़बूरी है मन कवी है धडकनों पे प्यार पे लिखता हू मै बहार पे पर बुद्धि तो मेनेजर है जिसको आई लाज बिगड़ा उसका काज ये सिद्धांत है सेल्फ प्रमोसन से न शर्माइए अपना कार्ड अपने हाथो बड़ाइए : शशिप्रकाश सैनी

राजमाता सत्ता की

http://shashikikavitaye.wordpress.com नाफरमानी रानी से कुछ तो सीखिये दिल्ली की कहानी से जिसे सर झुकना आता नहीं रानी को वो भाता नहीं हुक्म पे तामिल हो मै राजमाता सत्ता की मेरी बात ना हो अनसुनी मै राजमाता सत्ता की जिसको जब चाहे गिरा दू पद पे सारे बिठा दू मै बंदरी और बंदरा दे के सारे हाथों में उस्तरा हुक्म ये चलाइए मन हो जिस तरह इस तरह या उस तरह मेरी भरनी चाहिए जेब चाहे हो जिस तरह हुक्म पे तामिल हो मै राजमाता सत्ता की कितने बड़े खिलाड़ी है कितने चतुर है जनता के दुःख पे आसूं पर सत्ता से रिश्ते मधुर है साथी सत्ता के सबसे चतुर है साथ उनके है और अलग दिखलाना भी है चासनी भी चाटनी है और चिल्लाना भी है : शशिप्रकाश सैनी  You might also like: आग पेट्रोल में लगा के  अठाईस की अमीरी इंसान रहने दो वोटो में न गिनो राजनीति की प्रयोगशाला

अठाईस की अमीरी

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Photo courtesy: The Hindu योजना अयोग्य की योग्यता देखिए जानता को अठाईस की अमीरी के छलावे है अपने शौक के लिए पैतीस लाख के शौचालय है अठाईस रुपये की अमीरी नहीं जच रही हां मानता हू पहली बार अमीर जो हुए है इतनी आसानी से नहीं पच रही गाड़ी में पेट्रोल नहीं मुह में दाना नहीं मुन्ना मुन्नी की फीस भारी पड़ी पर ऑसू बहाना नहीं सरकार ने आपको अमीर कर दिया है खुद को गरीब बताना नहीं बी पी एल की कम कर दी है लकीर जो अठाईस से कम कमाए वो ही फकीर     बेकार की नाराज़गी फिजूल की  हाय तोबा जो करोडो देश का खायेंगे बिना डकार के पचाएंगे वो ऐसे ही रास्ते पे थोड़ी ना बहाएंगे करोड़ो की गंदगी है मोड़ों पे थोड़े ना शुरू होजाएंगे कम से कम पैतीस लाख का बनवाएंगे शौक से सौचा मिटाएंगे तब जाके बहाएंगे : शशिप्रकाश सैनी 

कलुआ ले गया गाड़ी जी

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पेर्टोल पिगाया सारी जी कलुआ ले गया गाड़ी जी दिखने में कबाड़ी जी कलुआ ले गया गाड़ी जी पुणे में मौज मारी जी हम घुमे तो लोकल की सवारी जी कलुआ ले गया गाड़ी जी कलुआ कलह का कारण हुआ झगडालू रूप धारण हुआ आन का तेल आन की गाड़ी जी मुफ्त की करता सवारी जी हमने इच्छाए मारी जी कलुआ ले गया गाड़ी जी दिखने में कबाड़ी जी आन का सतुआ आन का घी हलुआ खाए काला जी साल से ज्यादा होगया न किया गाड़ी में सैर सपाटा पूछने पे कहा गयी गाड़ी पापा ने डाटा गाड़ी पे पडोसी का राज मम्मी हुई नाराज़ हम हो जाए लोकल वो सडको के   सरताज भाई बहना सब नाराज़ कलुआ ले गया गाड़ी जी दिखने में कबाड़ी जी इतना न अच्छे हो जाइये अपनों को ही दूर पाइये दूसरा की हो मौज घर को तरसाइए इतना न अच्छे हो जाइये कलुआ ले गया गाड़ी जी दिखने में कबाड़ी जी : शशिप्रकाश सैनी

आग पेट्रोल में लगा के

मैडम जी १० जनपथ की राजशाही से बाहर आइए युवराज बिटिया दामाद को भी लाईए टूरिस्ट न बनाइए दो निवाले एक रात नहीं पूरा हफ्ता बिताइए चार पैसे पसीना बहा कमाइए १ लीटर पेट्रोल गाड़ी में डलवाइए क्या बचता है बताइए गर आपसे सरकारी ठाठ छीन ले राजवंश का राज छीन ले दिल्ली की गर्मी दे मुंबई की बरसात दे बनारस की धूल चेन्नई की उमस फिर जानियेगा आम आदमी कितना बेबस आटा दाल से उलझे या मुन्ना की फीस से सुलझे मन मार के जीता है खून खौल जाता है जब सरकारी मच्छर खून पीता है 3 जी 2 जी देश का है धन जानता का है उन्ही से बतमीजी अब कोयला भी खाइयेगा जी ये भी खूब चाल तेल की खुद बडाईयेगा आग पेट्रोल में लगा के गुहार अपनी ही कटपुतली से लगाइयेगा गरीब के दर्द पे घड़ियाली आसू बहाइएगा : शशिप्रकाश सैनी

न डालो पांचो उंगलिया घी में

न डालो पांचो उंगलिया घी में जब खुलेगी पोल सब डाल देंगी तुम्हे नदी में न डालो पांचो उंगलिया घी में जब उबलेंगी  तो उबल जाओगे उन्हीं में खुशी हो जाएगी खुदखुशी में न डालो पांचो उंगलिया घी में दिल खिलौना, प्यार खिलवाड़ नहीं है आज जीते हो, कल हारोगे इसी में न डालो पांचो उंगलिया घी में जिंदगी सबकी इन्साफ करती है स्वर्ग नर्क होता नहीं कुछ जमीं हिसाब करती है कांटे बोओगे तो कांटे ही मिलेंगे वापसी में न डालो पांचो उंगलिया घी में कोई रोए तो हँसो ना इतना उड़ो ना कल तुम्हारी सिसकिया दब न जाए हँसी में न डालो पांचो उंगलिया घी में आज घी में हो कल कढाई में होगे ज़िंदगी आग देगी जल जाओगे इन्ही में न डालो पांचो उंगलिया घी में गर जानना है क्या मजा है आशिकी में एक से दिल लगाइए खो जाईए उसी में न डालो पांचो उंगलिया घी में : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

प्रेम की छन्न पकैया

छन्न पकैया छन्न पकैया, छन्न से अटका दिल प्रेम डगर ऐसी है लल्ला, सबसे तू न मिल छन्न पकैया छन्न पकैया, प्रेम है ऐसा साँचा अब तक तुमको जाँच रही, सोचो कितनो को जांचा छन्न पकैया छन्न पकैया, नाक नक्श सूरत है प्रेम करे अबकी जो भैया, देखे न शिरत है छन्न पकैया छन्न पकैया, प्रेम है महंगा सौदा डिग्री सारी हाथ से छुटी, घर के अरमानो को रौंदा             छन्न पकैया छन्न पकैया, मुह मारे ये दर दर मन की माँगा है नीची सबसे, तन की आग है ऊपर छन्न पकैया छन्न पकैया, छन्न से आई लड़की बरसों की यारी टूटी , आग देखिए भडकी छन्न पकैया छन्न पकैया, छन्न से आई बाइक बटुआ भारी है तेरा जब, लड़की करेगी लाइक छन्न पकैया छन्न पकैया, छन्न से लगा कांटा भुत प्रेम का देखो उतरा , जब पड़ा है चांटा छन्न पकैया छन्न पकैया, प्रेम सच्चा बचपन का प्रेम करो उससे ही ,जो अब तक बच्चा मन का छन्न पकैया छन्न पकैया, मेरा मन भी बच्चा ढूढा रहा हू दर दर देखो, प्यार मिले कब सच्चा छन्न पकैया छन्न पकैया, प्रेम मिले जी ऐसा बाल  झडे झुरियां आए, प्रेम रहे वैसे का वैसा : शशिप्रकाश सैनी...

लक्ष्य क्या तय करे

छोटे पूछते हैं भविष्य का हम क्या करे किस रास्ते चले लक्ष्य क्या तय करे मिल जाए मंजिल वही कौन से हम पग भरे हम क्या बताएँ क्या रास्ता दिखाएँ हम क्या बनना चले क्या बन रहे बचपने में चौकीदारी भाती यही नौकरी मन लुभाती सातवीं में खिलौने तोड़ता फिर उन्हें जोड़ता वैज्ञानिक बनने की हो रही थी इच्छा अब नहीं रहा था मैं बच्चा होते होते हम इंजिनियर हो गए बचपन के सपने बचपने में खो गए एरोनॉटिक्स की थी कामना टेलिकम्यूनिकेशन्स से हुआ सामना इच्छा सोच समझ सब रह गई धरी की धरी ज़िंदगी की चाल भारी पड़ी होते होते हम इंजिनियर हो गए इंजीनियरिंग खत्म हुई कैट ने बरगला दिया बी स्कूल के दरवाज़े ला दिया एमबीए मेनेजर का उन दिनों ख्याल था  क्या बनना चाहते थे अब भी एक सवाल था कुछ महीनों मैनेजर रहें फिर हमारे गुरु बनारस ने हमें जगाया, यह नहीं तेरा रास्ता तू यहाँ क्यों आया  फिर इस्तीफा दे चले आए  दिल्ली की ख़ाक छानने अपने दिल की मानने दिल की सुनी, दिमाग क...

आधुनिक इश्क

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चाँद है चांदनी है  गुल है गुलिस्ता है इक इस दिल से पूछिये  मेरे लिए वो क्या क्या है वो भोर की हवा है दिल-ए-दर्द की दवा है डूबते को तिनका क्या तुम पूरी नाव हो  जेठ की दुपहरी में  ठंडी छाव हो  अब क्या क्या बताए  तुम क्या क्या हो  तुम कस्तूरी की सुगंध  तुम संक्रांति की पतंग  तुम ज़िन्दगी जीने की उमंग इतना भी ज्यादा  झूठ न बुलवाओ  कही हम सच न बतादे  तुम क्या हो  तुम मेरे मोबाइल का बिल हो  तुम घाटेवाली मिल हो तुम पेट्रोल का बड़ा दाम हो तुम महंगाई का पैगाम हो तुम शौपिंग की लिस्ट हो तुम वलेनटाइन का व्यापार हो तुम खाते का उधार हो तुम बड़ा महंगा प्यार हो कितना बताए तुम क्या क्या हो तुम फेसबुक की  वो प्रोफाइल पिक हो जब तक दुझी न खिचाए तब तक बदली न जाए  तुम भावो का आभाव हो  क्या क्या बताए तुम क्या क्या हो  मन की इच्छाओ पे  तन भरी है ये प्रेम की लाचारी है  मै मन से उथला हू  तुम मन से ओछी हो...

मंदबुद्धि इंजिनियर

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खिलौने तोड़ता था उन्हें जोड़ता था यहीं थी उसकी जिंदगी इन्हीं में कपार(सर) फोड़ता था दराज टुकडों से पटी ना जाने कितनी दुर्घटनाएं घटी लड़का होशियार था बस creativity का शिकार था इंजिनियर बनने की चाह पकड़ीं सही राह भौतिकी में जादूगरी रसायन से बाजीगरी विविध शास्त्रों से खेलने लगा दिन ब दिन नये तार छेड़ने लगा प्रयोग कुछ हो गए सफल कुछ रह गए अफसल कहता समंदर की लहरों पे सपने तैराऊंगा उन्ही से बिजली बनाऊंगा जब उसे आया Swing Type Generator  बनाने का Idea प्रोफेसर से बात की उसने उसे H.O.D के पास दिया H.O.D ने समझाया व्यर्थं में ना समय गवाओं किताबे रटो और  Marks लाओ कॉलेज को नहीं चाहिए था कोई innovator उनकी मांग थी ज़्यादा मार्क्स वाला मंदबुद्धि Engineer साथियों ने छेडा ये बनेगा मोहन भार्गव स्वदेस का पानी से बिजली बनाएगा भाग्य रोशन करेगा प्रदेश का अभी जख्म नहीं हुए थे heal तभी Semester ने ठोक दी आखिरी कील ख्वाब उम्मीद और ज़ज्बा सब year drop में बह गया Innovation ढह गया बस मंदबुद्धि इंजिनियर र...