सरकारी तेवर



मेरी घड़ी है मेरे सेकंड
मेरे मिनट है
60 को 100 करू 200 करू
तुम्हें क्या दिक्कत है
मै चालू अपनी रफ्तार से
है ज़िंदगी मेरी
जो मुर्गा सुबह बांग दे
जब हट जाए मेरी
रात उसे तंदूर पे टांग दे
तुम पुकारो और मै दौड़ आऊ
क्या मै पड़ा हु तुम्हारे प्यार मे
है काम तो लगो कतार मे
मेरे 2 मिनट तुम्हारे 2 सेकंड होंगे
देरी के लिए मुझे न बदनाम करो
ज्यादा जल्दी है तो अपना इंतजाम करो
कुछ न बदलना है
तुम्हारे खून के उबाल से
सरकारी कर्मचारी हु
घड़ी चले है कछुए की चाल से
नकद नारायण चड़ाओगे
तो जाके प्रसाद मिलेगा
नहीं तो अवसाद ले घर जाओगे

: शशिप्रकाश सैनी 

Comments

  1. Saini sahab! Aapne humko danya kar diya! Jis cheez se kavita janma, us cheez ko tho kahin ka nahin choda:)

    ReplyDelete
    Replies
    1. Looks to me that that comment was ambiguous..what i meant was 'kahin ka nahin choda' in comparison with yr poem

      Delete
  2. आपकी पोस्ट मे अपनी मर्ज़ी से समय तय करना स मिनट सुविधानुसार सेकन बढ़ाना
    ये तो सरकारी प्राणी ले लक्षण लगे इसलिए कविता उसी पे करदी

    ReplyDelete
    Replies
    1. Sarkari hi nahin hai janab...abh tho ghar ke kaam-kaaj bhi kuch aisi hi thevar se chalte hain - like the plumber, electrician etc.:) Par aapki kavita tho mere post ko bahut hi peeche chod diya quality mein.

      Delete
  3. सर जी पोस्ट तो आपकी सानदार है
    और उसी पोस्ट ने तो प्रेरित किया था

    ReplyDelete
  4. Wah...

    सरकारी कर्मचारी हु
    घड़ी चले है कछुए की चाल से
    नकद नारायण चड़ाओगे
    तो जाके प्रसाद मिलेगा
    नहीं तो अवसाद ले घर जाओगे :)) This says it all...!!:) A poignant one, Shashiprakash!

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

इंसान रहने दो, वोटो में न गिनो

रानी घमंडी