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सारी गलती रेल की

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एक को छोड़न दस चले दस को छोड़न सौ दो चले थे आदमी झोला दस ठे हो बोरी में गेहू भरे और भरे जी दाल जैसे मिलना कुछ नहीं शहर हुआ कंगाल पेंट्री सारी मर गई एंट्री कैसे हो खाना ले कर सब चले दिन दो हो या दो सौ सड़ा गला सब खाइए बोगी भी महकाइए  खर्चा कैसे हो दिन दो हो या दो सौ एक टिकट पे दस चले दस पे चलेंगे सौ क्या कटेगी पावती जब गाँधी जेबो में हो रेल बाप की हो गई जितना हो भर लो गर्मी की छुट्टी हुई मुलूक चलेंगे भाय ट्रेन रुकेगी हर घड़ी जिसका जब घर आए चैन पुलिंग है हक यहाँ हक से खिचो जी एक्सप्रेस को पसेंजेर करू ये मेरी मर्ज़ी सारी गलती रेल की लेट हुई तो लेट आग लगा के राख करू कर दू मटियामेट रेल भला भी क्या करे जब पसेंजेर ऐसा हो : शशिप्रकाश सैनी   Click here   for 1st part

भैया लेलो टिकट

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(भारतीय रेल यात्रीयों पे कविता का पहला भाग) एक बर्थ और एक सीट पे कितनी है झिकझिक कितने वेटिंग लिस्ट चल न दे विंडो सीट पूरी न आधी दे दे कुछ दे आर ए सी दे दे स्लीपर से ना हो पाए चल ए सी का टिकेट कटा स्लीपर है चालू जैसा ए सी में लगता पैसा मंजिल से मजबूर हू मै धीरे धीरे आऊंगा उड़ जाऊ हर बार उडु इतना भी न है  पैसा सुंदरी हुई रेल बहुत इतराए नखरे दिखाए जनता भी हो बावली पीछे दौड़े आए   बेटिकट चलना पाप है टी टी इस हसीना का बाप है जुर्माना टुकेगा हो जाओगे जेल भैया लेलो टिकट Without out fail प्याज टमाटर कट रही मिर्चा भी कट जाए गन्दी करे ये रेल इनको खानी भेल गन्दा ये केबिन करे जैसे टिकट नहीं है ली ट्रेन खरीदी जी शाशिया देखो मुँह फूला कब से है गुस्साए जल्दी से दुरी कटे घर को पहुचे भाय : शशिप्रकाश सैनी Click here  for 2nd part