बचपन ऐसा हो
धूल धुआ बारिश दे दे
चल जीवन का पाठ पढ़ा
क्या सीखेगा घर मे बैठे
जो पेड़ो पे न चढ़ा कभी
कीचड़ मे न कूदा हो
सोचो बचपन कैसा हो
रेत भरी मुट्ठी मे ना
लहरों से ना जूझा हो
ऐसा बचपन कैसा बचपन
इससे अच्छा कुछ ना हो
इटेरनेट टीवी दिवारे
सब तोड़ ताड़ के आओ तुम
चल तुझको आकाश दिखाए
नदिया पर्वत सब ले जाए
अपने बचपन के खेल बताए
बच्चो मे बच्चा हो जाए
छुपा छुपी खेलेंगे
पिट्ठू भी ना छोड़ेंगे
क्या है असली मौज बता
धूल धुआ बारिश दे दे
चल जीवन का पाठ पढ़ा
इतना भी न कर कोमल
गिर जाने पे निकले दम
चल थोड़ा दमदार बना
धूल धुआ बारिश दे दे
चल जीवन का पाठ पढ़ा
: शशिप्रकाश सैनी
sigh!! kahan mil payega bacchon ko yeh khilkhilata bachpan:(
ReplyDeleteLovely lines, Shashi.
आपको कविता पसंद आयी इस के लिए आभार
Deleteआज के मशीनि युग मे ऐसा बचपन मुश्किल हो गया है