अक्सर अकेला है
अजब खेल किस्मत
गज़ब का फैसला है
जो सोचता है दिल से
अक्सर अकेला है
न पेड़ो के इर्दगिर्द घूमे
न गाए पनघट पे तराने उसने
साफ़गोई से देता रहा जवाब
न छल किया
न किए बहाने उसने
बातों मे सच की कड़वाहट
झूठ की चासनी नहीं
झूठ की रंगत
झूठ की रोशनी नहीं
सच हमेशा फीका रहा
कही बात बनी नहीं
सीधी बात समझे
दुनिया इतनी समझदार नहीं
मन की बोली बोला
बना मक्कार नहीं
अक्सर अकेला रहा
लकीरों मे उसके प्यार नहीं
तन की आग की धधक मे
दिखी मन की चाँदनी नहीं
आग आग है
जब तक जलेगी
तुझे भी जलाएगी
इश्क़ की खुमारीय
एक दिन राख़ हो जाएगी
जब समय निकल जाता है
दुनिया को तभी याद आता है
मन मोती है
सीपियों मे सामना है
धड़कते दिल का
दिल ही ठिकाना है
हमेशा नज़ारो पे न रखे भरोसा
मन की भी सुने
मानता हू दुनिया मायाजाल है
परखना आसान नहीं
पर सुंदरता देवत्व की पहचान नहीं
: शशिप्रकाश सैनी
Comments
Post a Comment