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अठन्नी चवन्नी

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लोकल के धक्के और मेट्रो की भीड़ दफ्तर मे खटता है पीटे लकीर टाई और बूट पूरा है सूट मैनेजर जी निकले घर पहुचे फकीर खट खट के जीता घुट घुट के जीता और ज़ेबो मे क्या है अठन्नी चवन्नी अठन्नी चवन्नी बिजली का बिल है मुनिया की फीस पेट्रोल डलाए  राशन भराए बीवी भी बोले की अब मैके जाए  और ज़ेबो मे क्या है अठन्नी चवन्नी अठन्नी चवन्नी आलू है भालू टमाटर की टीस लहसुन और कांदा हुआ सब से वांदा बच्चे कहते संडे को है आना तो मुर्गा ही लाना और ज़ेबो मे क्या है अठन्नी चवन्नी अठन्नी चवन्नी साबुन कंघी लाली लिपिस्टिक मेकअप के खर्चे  और घर मे है झिकझिक  बीवी जी मांगे बनारसी साड़ी तनख्वा ने सारी फिर इज्ज़त उतारी ज़ेबो मे ढूंढा तो क्या मैंने पाया अठन्नी चवन्नी अठन्नी चवन्नी गर्मी है आई और छुट्टी है लाई मुन्ना ने मुन्नी ने मांग लगाई अब सैर कराओ दिल्ली दिखाओ मुंबई घुमाओ नानी और नाना और दादी और दादा घूमना यही नहीं इससे ज्यादा की ज़ेबो मे क्या है अठन्नी चवन्नी अठन्नी चवन्नी खेल खिलौने गुड़ा और गुड़िया मांगे...

अक्सर अकेला है

अजब खेल किस्मत  गज़ब का फैसला है  जो सोचता है  दिल से अक्सर अकेला है  न पेड़ो के इर्दगिर्द घूमे  न गाए पनघट पे तराने उसने  साफ़गोई से देता रहा जवाब  न छल किया  न किए बहाने उसने  बातों मे सच की कड़वाहट  झूठ की चासनी नहीं  झूठ की रंगत  झूठ की रोशनी नहीं  सच हमेशा फीका रहा  कही बात बनी नहीं  सीधी बात समझे  दुनिया इतनी समझदार नहीं मन की बोली बोला  बना मक्कार नहीं  अक्सर अकेला रहा  लकीरों मे उसके प्यार नहीं तन की आग की धधक मे दिखी मन की चाँदनी नहीं  आग आग है  जब तक जलेगी  तुझे भी जलाएगी  इश्क़ की खुमारीय  एक दिन राख़ हो जाएगी  जब समय निकल जाता है  दुनिया को तभी याद आता है मन मोती है  सीपियों मे सामना है धड़कते दिल का  दिल ही ठिकाना है  हमेशा नज़ारो पे न  रखे भरोसा  मन की भी सुने  मानता हू दुनिया मायाजाल है  परखना आसान नहीं  पर सुंदरता...

आस्था यहाँ जीवनी है

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जब भी यहाँ माथा टिकाते है ईश्वर को दुःख सुख का साथी बनाते है जब भी उसके घर आते है आपकी आस्था चूल्हा हो जाती है कइयो के घर चलाती है फूल नारियल चुनरी है आस्था यहाँ जीवनी है : शशिप्रकाश सैनी

क्या किया जाए

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फेसबुक की फ्रेंड लिस्ट में न हुई है आइटम सेट चैट ग्रूप में सब बेढंगे  करे हम किस से चैट क्या किया जाए क्या किया जाए ऑफिस में है बास की गली सर में है खटपट टारगेट सारे दूर हुए न चित मेरी न पट क्या किया जाए क्या किया जाए लोकल की है धक्कामुक्की ट्रेन भरी ठस ठस कंडक्टर की पकपक सुनते बेस्ट में भी बेबस क्या किया जाए क्या किया जाए ऑफिस में पूरी कडकी है सौ में दस ही लड़की है आँख कही पे फड़की है आग कही ये भड़की है बंद मेरी क्यों खिडकी है क्या किया जाए क्या किया जाए मूवी मल्टीप्लेक्स की शान हर वीकेंड पे जाती जान लो बजट मै पिक्चर डार्लिंग मेरी स्टार बड़ी कैसे दू कितना दे दू डिमांड बहुत है करती जी क्या किया जाए क्या किया जाए सिंगल का दंगल हू मम्मी कहती मैरेज कर पाप कहते अब घर भर पोते और पोती दे दे दाद और दादी कर दे क्या किया जाए क्या किया जाए जब से ई एम् आई बड़ी तनखा है सरमाई पड़ी दाल रोटी और दाना घर लाना कैसे लाना पेट्रोल की आग बढ़ी क्या किया जाए क्या किया जाए ...

क्या खूब है मर्दांगनी

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दिल के रिश्ते थे जो कोमल मांग प्यार की पुचकार थी  देता रहा वो पल -पल  लात घुसे और चप्पल  और बस धुत्कार थी  क्या खूब है मर्दांगनी दो रोटी चार दिन वो भी चलाए प्यार बिन भाग्य घर का सवारे  घर संभाले दफ्तर संभाले  तेरी दुनिया जिसके हवाले उसपे ही तू गुस्सा निकाले  पिटी है अर्धांगनी  क्या खूब है मर्दांगनी रात दिन खटती रहे चिंता से घटती रहे आंख काली पीठ सूजी हाथ में फ्रैकचर रहा  गलतीया पुरखों ने की  न  दी   कभी बराबरी  बस पुर्षत्व का लेकचर रहा अन्नपुर्णा के ही हाथ में फ्रैकचर रहा  क्या खूब है मर्दांगनी कौन कहता है सहो  पूरी ज़िन्दगी घुटती रहो  ले के कड़छी और बेलन  जब भी मारे दे दनादन  और तवा और थाली  अब की सुनना न गाली मुह फोड़ीये नाक भी अब की जो उंगली उठाए  न बचे उंगली न बचे आंख भी  बात दे तो बात दो लात दे तो लात दो वो असुर तुम दुर्गा बनो  अपनों को घायल करे  रिश्ते प...

राजमाता सत्ता की

http://shashikikavitaye.wordpress.com नाफरमानी रानी से कुछ तो सीखिये दिल्ली की कहानी से जिसे सर झुकना आता नहीं रानी को वो भाता नहीं हुक्म पे तामिल हो मै राजमाता सत्ता की मेरी बात ना हो अनसुनी मै राजमाता सत्ता की जिसको जब चाहे गिरा दू पद पे सारे बिठा दू मै बंदरी और बंदरा दे के सारे हाथों में उस्तरा हुक्म ये चलाइए मन हो जिस तरह इस तरह या उस तरह मेरी भरनी चाहिए जेब चाहे हो जिस तरह हुक्म पे तामिल हो मै राजमाता सत्ता की कितने बड़े खिलाड़ी है कितने चतुर है जनता के दुःख पे आसूं पर सत्ता से रिश्ते मधुर है साथी सत्ता के सबसे चतुर है साथ उनके है और अलग दिखलाना भी है चासनी भी चाटनी है और चिल्लाना भी है : शशिप्रकाश सैनी  You might also like: आग पेट्रोल में लगा के  अठाईस की अमीरी इंसान रहने दो वोटो में न गिनो राजनीति की प्रयोगशाला

ना से डरना क्या

मेरे इजहार पे तू शरमाई नहीं मै अस्मा हो के भी झुका  तू जमी हो के भी आई नहीं  वो समझी हम टूटेंगे बिखर  जाएंगे  फकीर की मानिन्द दर-दर जाएंगे  एक ना से डर जाऊ बिखर जाऊ  मुझमे इतनी नासमझी नहीं  तुने ना दी है  ठुकराया है मुझे  तो कही किसी के होठो में हां होगी रात घनी है तो जल्द ही सुबह होगी मेरे इजहार पे उसे शर्माना है  लबो को हौले से हिलाना है  की उसको हां हो जाना है  :शशिप्रकाश सैनी You might also like: ना का डर हां से हल्का है मिल जाए कोई कवयित्री खाली पन्नें

आजमाइश

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मेरे हौसलों को इतना आजमाया हैं  कड़कती बिजलीया बरसात  तूफान ले आया हैं  भेट या थाल में किस्मत कुछ न लाई उपहार में  तोला हैं परखा हैं तपाया हैं तेरे खुदा ने हर कदम पे आजमाया हैं  तब जाके हाथों में कुछ आया हैं  दो बुँदे बरसात की मुझे क्या भिगाएगी  क्या मेरा हौसला डिगाएगी हूँ परिंदा की  उड़ने की आदत हैं  आस्मां से यूँ मोहब्बत हैं  आंधी तूफान बिजलीयो  से परे  जिसकी ज़िन्दगी हो आस्मां  वो उड़ने से क्या डरे  : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

ज़िन्दगी हर मोड़ पे इम्तेहान रही

भीड़ लोगो की लगी  कभी बियाबान रही ज़िन्दगी हर मोड़ पे इम्तेहान रही कभी भोर की हवाओ में  कभी रात का तूफान रही  ज़िन्दगी हर मोड़ पे इम्तेहान रही  दुश्मन करे दोस्त करे  पर सीने पे वार करे  खंजर पीठ पे  बुज़दिली की पहचान रही  ज़िन्दगी हर मोड़ पे इम्तेहान रही  : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

अठाईस की अमीरी

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Photo courtesy: The Hindu योजना अयोग्य की योग्यता देखिए जानता को अठाईस की अमीरी के छलावे है अपने शौक के लिए पैतीस लाख के शौचालय है अठाईस रुपये की अमीरी नहीं जच रही हां मानता हू पहली बार अमीर जो हुए है इतनी आसानी से नहीं पच रही गाड़ी में पेट्रोल नहीं मुह में दाना नहीं मुन्ना मुन्नी की फीस भारी पड़ी पर ऑसू बहाना नहीं सरकार ने आपको अमीर कर दिया है खुद को गरीब बताना नहीं बी पी एल की कम कर दी है लकीर जो अठाईस से कम कमाए वो ही फकीर     बेकार की नाराज़गी फिजूल की  हाय तोबा जो करोडो देश का खायेंगे बिना डकार के पचाएंगे वो ऐसे ही रास्ते पे थोड़ी ना बहाएंगे करोड़ो की गंदगी है मोड़ों पे थोड़े ना शुरू होजाएंगे कम से कम पैतीस लाख का बनवाएंगे शौक से सौचा मिटाएंगे तब जाके बहाएंगे : शशिप्रकाश सैनी 

बीवी लाए हो दासी नहीं

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inspired by Vinisha's Post न नौकर न बावर्ची न कोई सामान लाए हो ध्यान से देखो डोलीं में तुम भी इंसान लाए हो जैसे तुम्हारे सपने है उसकी भी इच्छाएं है पुरुषत्व का ढोल न पीटो टटोलो मन उसका समझदार बनो सिर्फ जिम्मेदारीया ना गिनाओ थोड़ा तुम भी जिम्मेदार बनो दकियानूसी शक्कीमिजाज़ हो जाओगे तो दिल से दूर पाओगे अपने रिश्तों को अहमियत दोगे उसके नातो को खाजाओगे अपने लिए खुशी उसको उदासी बीवी लाए हो या दासी   दीवारों में खिड़कियां रहने दो मंगल जो सूत्र है उसे बेडियां न करो रिश्तों में जगह रहने दो हवा पानी बरसात मिले रात से दूर रखो धूप मिले सुबह रहने दो प्रेम बीज पौधा होजाए कल को फूल दे खुश्बू दे रिश्तों में इतनी समझ रहे एक के आँसू पे दूसरा कैसे पनपे कर्तव्य अधिकार बराबरी के रहे सिर्फ उसे ना झुकाओ खुद भी झुको सिर्फ अपनी न गिनाओ उसकी भी मजबूरियां समझो बंधुआ मजदुर कोई नौकर नहीं है वो जैसे अपने घर के तुम चिराग हो वैसे बड़े नाज़ों से पली है माँ बाप की पलकों पे चली है वो भी अपने घर की परी है ...

इंसान रहने दो, वोटो में न गिनो

न चोरी, न चकारी, न गुंडई में हूँ महेनत, लगन, शिद्दत, इन्हीं आदतों में हूँ न चोरी, न चकारी, न गुंडई में हूँ दिन रुसवाई, रात तनहाई में हूँ दो वक्त की रोटी के लिए बस खटतारहा हूँ और ईनाम में मिली तोहमतें हैं लोग यहाँ, मुझे बुराइयों में गिनते हैं मेरा घर, मेरी टैक्सी, मेरा ठेला, जला देंगे जब जी में आए, थप्पड़ लगा देंगे नोटों की गट्ठर, अगर होती मेरे सर तो नहीं जलता मेरा घर बिकाऊ हैं भीड़, बिकाऊ हैं पत्थर होनी चाहिए बस, नोटों की गट्ठर कहा से लाए नोटों की गट्ठर की अब तक, मैं ईमान में हूँ खाकी, खादी, बिक चुकी हैं इनकी नज़रों में, मैं इंसान नहीं हूँ क्योंकि आज भी ईमान में हूँ जो दो वक्त की रोटी के लिए पीसता हो दिन रात वो बदले में क्या देगा उसका तो घर ही जलेगा बंधू मित्र आना नहीं यहाँ ये स्वप्न नगरी नहीं छलावा हैं मशीन इतना हुए की न सपने हैं न इच्छा हैं कभी कभी भूल जाते हैं की हम भी जिन्दा हैं जब से इस शहर की राजनीति हुआ हूँ मैं सब सहमति से नोचे हैं दुर्गति हुआ  हूँ मैं मुझे मारना भी वोट हैं पुचकारना भी व...

गर्दन को मेरी अकड़न न दे

आप की बात में हौसला जो है  ये शशि नाम का पगला जो है तारीफ सुनते ही पर आजाते  इंडीब्लोगर न होता  तो ऐसे कदरदान कहा पाते  कविताये मेरी ब्लॉग मेरा  सुना था  मुझे ही लिखना था मुझे पढना था  कमेन्ट का न छुना था  कदरदान पे कदरदान  नहीं रहा मेरा ब्लॉग बियाबान  ये हौसला मेरी कलम को अकड़न न  दे  गुरुर हो जाये ऐसी सडन न दे  दिमाग भरा रहे ख्यालो से  गर्दन जुकी रहे मेरे  ख्यालो को  वजन दे  गर्दन को मेरी अकड़न न दे : शशिप्रकाश सैनी 

सोच

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photo courtesy: Nagini सोच में क्या है  इंतजार है की व्यथा है आँखों की जुबानी पढ़े  आंसुओ की कहानी पढ़े  प्रियतम से बिछड़ने का गम है या ख़ुशी है की आ रहा सनम है  सोच बहुत गहरी है  कौन जाने कहा ठहरी है  चाँद चांदनी में है सोच पूरी रोशनी में है  मन इतना गहरा है  ख़ुशी है की व्यथा है  किसको क्या पता है  सोच में क्या है :शशिप्रकाश सैनी 

मै मील का पत्थर

ऐ ज़िंदगी थोड़ा चान्स दे करने को हमे भी थोड़ा रोमांस दे  मोहब्बत  ख्यालों कविताओ से निकले  कोई दिल हम पे भी पिघले  मै चलता कोई चाल नहीं आँखों को भरमाए  मुझे में ऐसा कोई कमाल नहीं बस दिल है दिल में जज़्बात है  एक ही चाहू हज़ार नहीं मेरे यही ख्यालात है  प्यार में इसलिए पिछड़ा हू क्योकि इन दिनों  आँखों को जो भरमाए वही भाए बड़ा हू बेहतर हू  पता नहीं  पर मै मील का पत्थर हू जहाँ गडोगी वही रह जाएगा  सुन्दर है चमकदार है  जो आपकी नज़रों में हीरे है  जान लीजिए हीरे कीमत पे बिकते जो बड़ी बोली लगाएगा  साथ ले जाएगा  बाज़ार मंडियों की शान है हीरा बिकता है बिक जाएगा  हीरा पहनने में क्या मान है मै मील का पत्थर हू जहाँ गडोगी वही रह जाएगा  हीरा बिकता है बिक जाएगा  : शशिप्रकाश सैनी

कलुआ ले गया गाड़ी जी

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पेर्टोल पिगाया सारी जी कलुआ ले गया गाड़ी जी दिखने में कबाड़ी जी कलुआ ले गया गाड़ी जी पुणे में मौज मारी जी हम घुमे तो लोकल की सवारी जी कलुआ ले गया गाड़ी जी कलुआ कलह का कारण हुआ झगडालू रूप धारण हुआ आन का तेल आन की गाड़ी जी मुफ्त की करता सवारी जी हमने इच्छाए मारी जी कलुआ ले गया गाड़ी जी दिखने में कबाड़ी जी आन का सतुआ आन का घी हलुआ खाए काला जी साल से ज्यादा होगया न किया गाड़ी में सैर सपाटा पूछने पे कहा गयी गाड़ी पापा ने डाटा गाड़ी पे पडोसी का राज मम्मी हुई नाराज़ हम हो जाए लोकल वो सडको के   सरताज भाई बहना सब नाराज़ कलुआ ले गया गाड़ी जी दिखने में कबाड़ी जी इतना न अच्छे हो जाइये अपनों को ही दूर पाइये दूसरा की हो मौज घर को तरसाइए इतना न अच्छे हो जाइये कलुआ ले गया गाड़ी जी दिखने में कबाड़ी जी : शशिप्रकाश सैनी