ट्रेन है मेरी चलना होगा
दुनिया कहेगी बावला मुझको
जब भी मै होता हू घर छोड़ने को
शहर मेरा रोता है
बरसता है बहोत
जिसकी गोदी में खेला दिन रात
झेली गर्मी और झेली बरसात
लड़कपन की मेरी दोस्ती रही
यौवन का रहा साथ
मेरे शहर से मेरा कुछ यु है रिश्ता
अक्ल वालो को नहीं समझता
बड़प्पन आया है
अपनी सजाए भी साथ लाया है
शहर छोड़ना होगा उस भीड़ में जाना है
जहा हर शख्स पराया है
बिछड़ना बरसात ले आता है
आँखों से छलकते ज़ज्बात ले आता है
वो भी है नाराज़ नहीं
मै भी हू नाराज़ नहीं
जानते है बस अगर चलता
हम बिछड़ते थोड़ी
ट्रेन है मेरी चलना होगा
कुछ समय के लिए बिछड़ना होगा
पनवेल मेरा घर लेता हू विदाई तुझ से
मुझे तू याद आएगा
तुझे मै याद आऊंगा
लोगो को रहने दो समझदार बहोत
मुझे अपने पनवेल से है प्यार बहोत
: शशिप्रकाश सैनी
बहुत सुन्दर शशि जी....
ReplyDeleteकोमल सी रचना....
आखरी पंक्तियों में बहोत को बहुत कर दीजिए..खटक रहा है..
:-)
अनु
धन्यवाद अनु जी
Deleteजान भुझ के बहोत रखा है
Mmm! Apni darti se lagav ka bahut sundar pradarshan
ReplyDelete