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क्या खूब है मर्दांगनी

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दिल के रिश्ते थे जो कोमल मांग प्यार की पुचकार थी  देता रहा वो पल -पल  लात घुसे और चप्पल  और बस धुत्कार थी  क्या खूब है मर्दांगनी दो रोटी चार दिन वो भी चलाए प्यार बिन भाग्य घर का सवारे  घर संभाले दफ्तर संभाले  तेरी दुनिया जिसके हवाले उसपे ही तू गुस्सा निकाले  पिटी है अर्धांगनी  क्या खूब है मर्दांगनी रात दिन खटती रहे चिंता से घटती रहे आंख काली पीठ सूजी हाथ में फ्रैकचर रहा  गलतीया पुरखों ने की  न  दी   कभी बराबरी  बस पुर्षत्व का लेकचर रहा अन्नपुर्णा के ही हाथ में फ्रैकचर रहा  क्या खूब है मर्दांगनी कौन कहता है सहो  पूरी ज़िन्दगी घुटती रहो  ले के कड़छी और बेलन  जब भी मारे दे दनादन  और तवा और थाली  अब की सुनना न गाली मुह फोड़ीये नाक भी अब की जो उंगली उठाए  न बचे उंगली न बचे आंख भी  बात दे तो बात दो लात दे तो लात दो वो असुर तुम दुर्गा बनो  अपनों को घायल करे  रिश्ते प...

अठाईस की अमीरी

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Photo courtesy: The Hindu योजना अयोग्य की योग्यता देखिए जानता को अठाईस की अमीरी के छलावे है अपने शौक के लिए पैतीस लाख के शौचालय है अठाईस रुपये की अमीरी नहीं जच रही हां मानता हू पहली बार अमीर जो हुए है इतनी आसानी से नहीं पच रही गाड़ी में पेट्रोल नहीं मुह में दाना नहीं मुन्ना मुन्नी की फीस भारी पड़ी पर ऑसू बहाना नहीं सरकार ने आपको अमीर कर दिया है खुद को गरीब बताना नहीं बी पी एल की कम कर दी है लकीर जो अठाईस से कम कमाए वो ही फकीर     बेकार की नाराज़गी फिजूल की  हाय तोबा जो करोडो देश का खायेंगे बिना डकार के पचाएंगे वो ऐसे ही रास्ते पे थोड़ी ना बहाएंगे करोड़ो की गंदगी है मोड़ों पे थोड़े ना शुरू होजाएंगे कम से कम पैतीस लाख का बनवाएंगे शौक से सौचा मिटाएंगे तब जाके बहाएंगे : शशिप्रकाश सैनी 

बीवी लाए हो दासी नहीं

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inspired by Vinisha's Post न नौकर न बावर्ची न कोई सामान लाए हो ध्यान से देखो डोलीं में तुम भी इंसान लाए हो जैसे तुम्हारे सपने है उसकी भी इच्छाएं है पुरुषत्व का ढोल न पीटो टटोलो मन उसका समझदार बनो सिर्फ जिम्मेदारीया ना गिनाओ थोड़ा तुम भी जिम्मेदार बनो दकियानूसी शक्कीमिजाज़ हो जाओगे तो दिल से दूर पाओगे अपने रिश्तों को अहमियत दोगे उसके नातो को खाजाओगे अपने लिए खुशी उसको उदासी बीवी लाए हो या दासी   दीवारों में खिड़कियां रहने दो मंगल जो सूत्र है उसे बेडियां न करो रिश्तों में जगह रहने दो हवा पानी बरसात मिले रात से दूर रखो धूप मिले सुबह रहने दो प्रेम बीज पौधा होजाए कल को फूल दे खुश्बू दे रिश्तों में इतनी समझ रहे एक के आँसू पे दूसरा कैसे पनपे कर्तव्य अधिकार बराबरी के रहे सिर्फ उसे ना झुकाओ खुद भी झुको सिर्फ अपनी न गिनाओ उसकी भी मजबूरियां समझो बंधुआ मजदुर कोई नौकर नहीं है वो जैसे अपने घर के तुम चिराग हो वैसे बड़े नाज़ों से पली है माँ बाप की पलकों पे चली है वो भी अपने घर की परी है ...

इंसान रहने दो, वोटो में न गिनो

न चोरी, न चकारी, न गुंडई में हूँ महेनत, लगन, शिद्दत, इन्हीं आदतों में हूँ न चोरी, न चकारी, न गुंडई में हूँ दिन रुसवाई, रात तनहाई में हूँ दो वक्त की रोटी के लिए बस खटतारहा हूँ और ईनाम में मिली तोहमतें हैं लोग यहाँ, मुझे बुराइयों में गिनते हैं मेरा घर, मेरी टैक्सी, मेरा ठेला, जला देंगे जब जी में आए, थप्पड़ लगा देंगे नोटों की गट्ठर, अगर होती मेरे सर तो नहीं जलता मेरा घर बिकाऊ हैं भीड़, बिकाऊ हैं पत्थर होनी चाहिए बस, नोटों की गट्ठर कहा से लाए नोटों की गट्ठर की अब तक, मैं ईमान में हूँ खाकी, खादी, बिक चुकी हैं इनकी नज़रों में, मैं इंसान नहीं हूँ क्योंकि आज भी ईमान में हूँ जो दो वक्त की रोटी के लिए पीसता हो दिन रात वो बदले में क्या देगा उसका तो घर ही जलेगा बंधू मित्र आना नहीं यहाँ ये स्वप्न नगरी नहीं छलावा हैं मशीन इतना हुए की न सपने हैं न इच्छा हैं कभी कभी भूल जाते हैं की हम भी जिन्दा हैं जब से इस शहर की राजनीति हुआ हूँ मैं सब सहमति से नोचे हैं दुर्गति हुआ  हूँ मैं मुझे मारना भी वोट हैं पुचकारना भी व...

नाता तोडना गुनाह नहीं

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Photo courtesy: Saishyam and Arun Photography साथी सफर के जब हमसफ़र ना हो पाए जब रहे हम हमराह नहीं रास्ता बचा कोई दूसरा नहीं नाता तोडना गुनाह नहीं जब मालूम ये पड़ जाए रिश्ता रहेगा पत्थर होगा देवता नहीं नाता तोडना गुनाह नहीं इंसान गलतियों का पुतला है कुछ तुमसे हुई कुछ हमने की जब और पटरी ना खाए दुनिया के लिए क्यों तमाशा हो जाए साथ तो छोडो पर दिल न तोड़ो दिल को करो ना बर्बाद दिल मिलेगा हमराही रहे इतना आबाद दिल गाठे खोलो ऐसे की कल को नज़र मिला पाए दोस्त रहे दुश्मन न होजाए ये ज़िंदगी के हिस्से है मिटा ना पाओगे किसी राह में टकराओगे मुस्कुराना मुश्किल ना होजाए उसे आसान रहने दो हाथ मिला पाए इतना मान रहने दो ऐ अतीत मेरे हम हमराही ना होपाए हमसफ़र ना होपाए तुम भी रहो इन्सान  हमे भी इन्सान रहने दो  ज़िंदगी आसान रहने दो :शशिप्रकाश सैनी

सागर निमंत्रण

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Photo courtesy: Akanksha Dureja कानो में सागर की जब भी आवाज़ आती थी लहरें गीत गाती थी जैसे हमको बुलाती थी पाबंदियां बेडियां कोलाहल शहर की शहर छोड़ आओ साथी को भी संग लाओ आओ आन्नदमय हो जाओ लोक लाज दुनिया की दुनिया को मुबारक न डरो न शरमाओ आन्नदमय हो जाओ सर पे जो भारी थी चिंता दुविधा जिम्मेदारी थी इसी तट पे दे मारी थी यही गठरी उतारी थी ढूढो रेत में सीपियाँ शंख ढूढो शंखनाद करो जीवन जीवन लगे ऐसा उन्माद करो डुबकियाँ लगाओ लहरों पे तैरो पिंजरे खोलो खुदको आजाद करो आज कुछ उन्माद करो शंख ढूढो शंखनाद करो जब प्रकृति देती हो निमंत्रण आज तो छोड़दो दिखावटीपन जब दिन के खेल से थक जाएंगे रेत बिस्तर हो जाएगी प्रकृति माँ रात चादर ओडाएगी : शशिप्रकाश सैनी

भावनाओं का दर्पण है

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कोई तरकीब कोई तरीका कोई उदाहरण बताइए लोग पूछते है अपनी लेखनी का कारण बताइए कारण से भी लिखता हू लिखता हू अकारण भी जब भी मन ने कही कलम चल दी फूलो की महक पे चिड़ियों की चहक पे धन ताकत जब भी करे विवश सज्जनो का ना चले वश लिख देता हू आग की दहक पे जो भी सनका देती है इस कवी को लिख देता हू हर उस सनक पे माटी की खुशबू पे ज़िंदगी की जुस्तजू पे या दिल की आरजू पे जैसे साज़ के तार छेड दो तो वो तराने सुनाने लगती है वैसे ही ठंडी हवा के छुने पे मुझ में से कविता आने लगती है काव्य मेरे सुख का साथी है तो दुख का सहारा भी मुझे उचाईयों पे ले गया तो गर्क से उभारा भी जीतनी हिम्मत इन्होने दी उतनी कही से ना मिली पिता के आदर्श है माँ की लाड़ है बहन की राखी है बुजुर्गोँ की लाठी है ज़िंदगी भर की सीख है भावनाओं का दर्पण है ये कोई काव्य संग्रह नहीं ये तो मेरा मन है : शाशिप्रकाश सैनी               

न डालो पांचो उंगलिया घी में

न डालो पांचो उंगलिया घी में जब खुलेगी पोल सब डाल देंगी तुम्हे नदी में न डालो पांचो उंगलिया घी में जब उबलेंगी  तो उबल जाओगे उन्हीं में खुशी हो जाएगी खुदखुशी में न डालो पांचो उंगलिया घी में दिल खिलौना, प्यार खिलवाड़ नहीं है आज जीते हो, कल हारोगे इसी में न डालो पांचो उंगलिया घी में जिंदगी सबकी इन्साफ करती है स्वर्ग नर्क होता नहीं कुछ जमीं हिसाब करती है कांटे बोओगे तो कांटे ही मिलेंगे वापसी में न डालो पांचो उंगलिया घी में कोई रोए तो हँसो ना इतना उड़ो ना कल तुम्हारी सिसकिया दब न जाए हँसी में न डालो पांचो उंगलिया घी में आज घी में हो कल कढाई में होगे ज़िंदगी आग देगी जल जाओगे इन्ही में न डालो पांचो उंगलिया घी में गर जानना है क्या मजा है आशिकी में एक से दिल लगाइए खो जाईए उसी में न डालो पांचो उंगलिया घी में : शशिप्रकाश सैनी  //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध  Click Here //

ये गाँधी क्यों है

( ये मेरी एक पुरानी कविता है मैंने इसमें कुछ परिवर्तन किया है वर्तमान मुद्दे पे ) क्या ये कभी    नंगे पाँव धरा पे चला होगा क्या धूप में    इसका भी पसीना बहा होगा क्या बारिश में    ये कभी भीगा होगा क्या ये कभी   गैरो के गम में रोया है क्या ये   बिना बिस्तर सोया है क्या ये उस महात्मा की ज़िंदगी का    एक टुकड़ा भी जिया है तो ये काहे का गाँधी   ये गाँधी क्यों है बिना मातृत्व की छाव के बिना खानदानी नाव के क्या ये पानी में उतरा है तो क्यों ये २५वे वसंत में ही प्रधानमंत्री बनने का दम भरता है आज नहीं हरदम भरता है ये गाँधी क्यों है ये बस उसकी बात नहीं यहाँ बाज़ार है लगा हुआ कोई गाँधी बेचता है तो यादव से माधव तक सब मिलेगा कोई करुना का सागर बन निधि इतनी जमाली है की ३ जी है आदर्श सब बिकाऊ है इनके घरों में सब कमाऊ है अगर ये बाज़ार है   तो ये सब बाजारू है सांसे गिनती में हमे बराबर मिल...

मै बचपन जैसा हू

मै खेलूंगा पानी से भी मै आग लगाऊंगा मुझे बाकी अब भी बच्चा कुछ भी कर जाऊंगा न दीवारों से डरता मै न तलवारो से डर दीवारे लाघुन्गा मै भाग भी जाऊंगा मटमैला मै मै मटमैला हू कपडों से कीचड़ से न डरता हू न बारिश से न धूल की फिकर न धूप से ही डर चमड़ी मेरी मोटी न करता कुछ असर डरता ना डरता ना ना कोई फिकर दिल  से अब भी बच्चा हू क्या होता है डर सब्र नहीं बेसब्र हू मै सच्चा हू मगर दिल में जो चेहरे पे वो बाते मेरी सीधी है न टेड़ी है नज़र एक ही मेरी रंगत है एक ही सूरत है सब अपनी अपनी करते मै हम में जीता हू दोस्त मेरे बच्चे जैसे मै बचपन जैसा हू : शशिप्रकाश सैनी 

गोद में मोहना धरें

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गोद में मोहना धरें, शहर रही है घूम न मंदिर न मस्जिद रहे , मानवता की धूम मानवता की धूम, दिल से दिल मिलने लगे  रूप सबका एक सा , चेहरें प्रीत रंग रंगें  बातो में मिश्री घूले , बचे कोई ना भेद  यशोदा या हिना रहे , प्यारी माँ की गोद  : शशिप्रकाश सैनी

जब भी उसका मुस्कुराना हुआ

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                                             Inspired by Maitreyee Bhattacharjee's post ' जिस दुनिया में हँसना मुस्कुराना है गुनाह तेवर तल्खी ताना हुआ जब भी उसका मुस्कुराना हुआ बदसूरती को आजाब समझती थी दुनिया आप ने बताया की खूबसूरत होना भी पाप है जब भी आप हँसी खिलखिलाई जब भी आपका मुस्कुराना हुआ बात से सिर्फ बात हुई लोगो ने समझा दिल लगाना हुआ आप हँसती रही खुशी की तरह उन्हें हँसी लगी आशिकी की तरह वो हँसे भी ना, रोए भी ना हर मुस्कान में मतलब निकालने लगी दुनिया हँसना मुस्कुराना गुनाह हुआ कभी छिटाकशी कभी सिटी बजाना हुआ कभी तेवर कभी तल्खी कभी ताना हुआ हसीन, रंगत, गोरापन सब छेड़ने का बहाना हुआ उस गली से मुश्किल आना जाना हुआ ऑफिस कॉलेज सारे शहर से बचाना हुआ हाथ दोस्ती का, हमदर्दी का या इज्ज़त पे अजमाना हुआ मुश्किल दोस्त बनाना हुआ ओछा पूरा जमाना हुआ किस से कहे क्य...

मेरी मदिरा मेरे पास

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न भट्टो पे जाता हू न देशी दारू की दुकान न मैखाने से पहचान जो नशा ज़िंदगी देती मुफ्त में मै उन्हें बोतलों में खरीदता नहीं मेरी मदिरा मेरे पास तीखे मोड चडाई ढलान मुश्किल ज़िंदगी कभी आसान मेरी मदिरा इन्ही में है नशा ज़िंदगी में है मेरी मदिरा मेरे पास एक कटिंग चाय दो वाडा पाँव समोसे जलेबी से लगाव मेरी मदिरा इन्ही में है नशा हर किसी में है मेरी मदिरा मेरे पास माँ की लाड में पापा की डाट में बहना से उलझने में फिर सुलझने में है इनके प्यार में नशा पुरे संसार में मेरी मदिरा मेरे पास यारो की यारी में इश्क की खुमारी में रूठने मनाने में होठो के टकराने में प्यार जताने में उनसे नज़र मिलाने में जज्बात दिखाने में नशा इतना है क्यों जाए मैखाने में मेरी मदिरा मेरे पास कविता में शायरी में पूरी मेरी डायरी में हर शब्द नशीला है दिल से जो निकला है मेरी मदिरा मेरे पास जब छलके इतनी तो क्यों खरीदनी : शशिप्रकाश सैन...

देवत्व मन का गुण

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लोभ माया लालसा हवस है मन घर हो गया है इन्ही का चलता बस है आदमी बेबस है कुछ नहीं बदलता घर में मूर्तियाँ लगाने से न काशी जाने से न गंगा नहाने से जब मन पापी है क्या होना है तन पे साबुन लगाने से देवत्व अगर मूर्तियों में ही होता तो हर मूर्तिकार का घर स्वर्ग न होता देवत्व मन का गुण सज्जन बने तज सारे अवगुण देवत्व मन का गुण मै काशी में हो के भी काशी न गया मन मैला था मन लोभ से भरा लालसा हवस का पहरा अपनी नज़र से न नज़र मिला पाए तो कैसे कशी जाए कैसे गंगा नहाए दानवीय युग में देवत्व लाना कठिन सज्जनता मुश्किल दुर्जनता मुमकिन चाँद की चाँदनी में है सूरज की रोशनी में है चिड़िया की चहचहाहट में हवा की सरसराहट में भोर की पवन में है बच्चो के बचपन में है देवत्व कही है तो यही है मूर्तियों में नहीं है :शशिप्रकाश सैनी 

हँसना ज़िन्दगी है

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ख़ुशी है एहसास है  आपका मुस्कुराना ख़ास है गम की लकीरों पे हँसी भारी है  आप प्यारी  आपकी मुस्कुराहट भी प्यारी है  बिना हँसी के ज़िन्दगी अधूरी है हँसना ज़रूरी है भोला है चेहरा  सुन्दर है आंखे  फिर कैसे न मन में झाँके आंखे मन में झाँकती है इतनी छुट हर किसीको न दी है  हँसना ज़िन्दगी है  हँसिए मुस्कुराते रही ये  आपका हँसना कीमती है  हँसना ज़िन्दगी है  दुनिया बुरी है  बुरे है लोग  दर्द पे न आंसू बहाए  न रो ही पाए  बुरी है दुनिया  बुरे है लोग  नटखट है दिखने में और दिल में भलाई है ये हँसी कहा से लाई है हँसना खुदाई है  न मोतीयो के मोल  न सिक्को से तोल इंसा बिक जायेगा  बहोत है प्यार के बोल आपकी हँसी अनमोल  मुस्कराहट कुदरती है दिल से जो निकली है  दुनिया ढोंग है  दुनिया नकली है बस जो लबो पे थिरकी है वाही हँसी असली है  ये भी एक ढंग जीने का ये भी रंग-ए-ज़िन्दगी है  हँसना ज़िन...

आधुनिक इश्क

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चाँद है चांदनी है  गुल है गुलिस्ता है इक इस दिल से पूछिये  मेरे लिए वो क्या क्या है वो भोर की हवा है दिल-ए-दर्द की दवा है डूबते को तिनका क्या तुम पूरी नाव हो  जेठ की दुपहरी में  ठंडी छाव हो  अब क्या क्या बताए  तुम क्या क्या हो  तुम कस्तूरी की सुगंध  तुम संक्रांति की पतंग  तुम ज़िन्दगी जीने की उमंग इतना भी ज्यादा  झूठ न बुलवाओ  कही हम सच न बतादे  तुम क्या हो  तुम मेरे मोबाइल का बिल हो  तुम घाटेवाली मिल हो तुम पेट्रोल का बड़ा दाम हो तुम महंगाई का पैगाम हो तुम शौपिंग की लिस्ट हो तुम वलेनटाइन का व्यापार हो तुम खाते का उधार हो तुम बड़ा महंगा प्यार हो कितना बताए तुम क्या क्या हो तुम फेसबुक की  वो प्रोफाइल पिक हो जब तक दुझी न खिचाए तब तक बदली न जाए  तुम भावो का आभाव हो  क्या क्या बताए तुम क्या क्या हो  मन की इच्छाओ पे  तन भरी है ये प्रेम की लाचारी है  मै मन से उथला हू  तुम मन से ओछी हो...