हम चौपाल के कवि






शिपिया टटोलता हु मोतियों की आश में
काव्य के मोती मिले जाने किस लिबास में


मुक्तक हाइकु दोहा हो हास्य रंग भिगोया हो
है रस बरस रहा क्यों बैठे जी प्यास में


अतुकांत तुकांत ग़ज़ल करे कोई नयी पहल करे
भविष्य काव्य का झाके आके देखे इतिहास में


हास्य रस है वीर रस और कही सृंगार रस
आइये पढ़े सुने भरे मन के गिलास में


हम चौपाल के कवि हर ख्याल के कवि
अब की चौपाल बिठानी ले आइये पास में


मोतियों की माल आप बिन अधूरी है
"सैनी" कहता है ये पुरे होशो-हवास में


: शशिप्रकाश सैनी




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