असली बात करो
मैं कवि हूँ
बस कविता करता हूँ
बस कविता करता हूँ
लाऊं कैसे दर्द खुशी
उधार की
रोना है हँसना है
असल मेरी हर रचना है
ज़िंदगी कोई झूठ पे
कैसे जिएं
आइने दिखा देते है
असली सूरत
कब तक आइनों
से बचे
दुनिया का हर शख्स
आईना है
कब तक किससे कितना छुपोगे
नकाब ओड़ोगे या आईना तोड़ोगे
जिस दिन अपनी नज़ारो से गिरे
फिर कैसे जियोगे
झूठ की इटे झूठ की
दीवार
झूठ का महल
जब नींव ही खोखली होगी
इमारत कब तक टिकेगी
जब सच बरसेगा पानी बनकर
या हवाओं में आयेगा
झूठ के दस सर भी कम पड़ेंगे
जब सच पुर्षोतम हो जाएगा
तीर चलाएगा
झूठ तास का महल
ढह जाएगा
असली चेहरो मे घूमो
असली बात करो
बंदर भी कर लेता है नकल अच्छी
अंदर का बंदर
किसी दिन
उस्तरा गले पे घूमा देगा
सर न बचेगा
ऐसे न हालात करो
इंसान ही रहो बंदर न बनो
असली चेहरा दिखाओ
असली बात करो
: शशिप्रकाश सैनी
You write very well, simple language and great meaning :)
ReplyDeleteहौसला आफजाई का शुक्रिया ग़ज़ला जी
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