ज़िंदगी सुबह थी हम जिधर गए उधर गए तुम
ज़िंदगी
सुबह थी हम जिधर गए उधर गए तुम
रात
होने लगी साथ छोड़ गए अंधरे से डर गए तुम
तुम
में अरमा थे बसे सासे थी ज़िंदगी तुमसे थी
हार
बाहों का मोतियों का नहीं फिर क्यों बिखर गए तुम
मै
मोहब्बत पूजने लगा था इश्क मजहब हो गया था
बावाफई
का सिला बेवफ़ाई मिला नज़रों से उतर गए तुम
जरुरत
पडने पे सर झुकाना तेरा आसू मतलबी बहाना तेरा
आवाज़
में नरमी नम आँख देख दुनिया समझती सुधर गए तुम
जब
तुने मुह मोड़ा था “सैनी” ने धड़कना छोड़ा था
जब
वफ़ा की चिता जली उसके लिए मर गए तुम
:
शशिप्रकाश सैनी
सुन्दर रचना .....
ReplyDeletedhanywaad indu ji
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