कुछ मेरे भीतर था जिंदा जो बचपन जैसा था एक रात ऐसा डर आया खुद से लड़ना छोड़ दिया है हाँ! मैंने कविता पढ़ना छोड़ दिया है सपनों की सच्चाई देखी देखा टूटें अरमानों को प्रतिभा के माथे चढ़ चढ़ कर मन का मढ़ना छोड़ दिया है हाँ! मैंने कविता पढ़ना छोड़ दिया है छोड़ सके तो, छोड़ मैं देता कागज कलम सिहाई को लत अपनी ये तोड़ न पाया भाव मैं गढ़ना छोड़ न पाया पर हाँ! मैंने कविता पढ़ना छोड़ दिया है # Sainiऊवाच
very nice shashi !
ReplyDeleteधन्यवाद अल्का जी
DeleteAmazing lines
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