देवी
रुखी खुरदुरी त्वचा , साडी
गन्दी फटी
खलीहानो की रौनक , मिट्टी
धूल लिपटी
मिट्टी धूल लिपटी , जेठ दुपहरी की तपी
देवत्व इस में भी , त्याग
परिश्रम की देवी
घर की अन्नपूर्णा सी , पर
सो जाए भूखी
देवी ईश्वरीय देन , कैसे कहे रुखी
: शशिप्रकाश सैनी
गहराई से भरी रचना ...........
ReplyDeleteaabhar indu ji
Delete