मेरे दरवाज़े नहीं खुले हर किसी के लिए
मेरे दरवाज़े नहीं खुले हर
किसी के लिए
जो मौत से डरता रहे लड़ेगा
क्या ज़िंदगी के लिए
अंधेरे से निकलने पे मालूम
होता है
हर कीमत कम है रौशनी के लिए
न तेवर दिखाओ न अकडों देवता
बनकर
तो तुम्हे भी चाहिए लोग
बंदगी के लिए
धूप में तपे ठंड से ठिठुरे
रोटी जुटाने में
बिक गए लोग गाड़ी मोटर कोठी
के लिए
जिस शहर में रहता है बड़ी
रोशनी है “सैनी”
तारे देखे जमाना हो गया तरस
गए खिड़की के लिए
: शशिप्रकाश सैनी
Very beautiful and poetic. Your name in the poem is so charming.
ReplyDeleteधन्यवाद सरू जी
Deleteतारे देखे जमाना हो गया तरस गए खिड़की के लिए .....lovely line :-)
ReplyDeleteधन्यवाद बोस जी
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