इन्टरनेट मोबाइल पे फन है
इन्टरनेट मोबाइल पे फन है
जैसे की बचपन है
कि मैं अब भी दरवाजे खटखटा
सकता हूँ
चिल्ला सकता हूँ
दोस्तों को बुला सकता हूँ
बंदिशें दूरियां सब बेमानी हैं
अब मन की मनमानी है
मैं देख सकता हूँ तुम्हें
खुद को जता सकता हूँ
क्या सोचता क्या समझता हूँ
इस बेतार के तार पे बता
सकता हूँ
दरवाजे खटखटा सकता हूँ
अपनी आजादी हाथ लिए चलता हूँ
तड़पता हूँ, मचलता हूँ, बिखरता हूँ, संभलता हूँ
कोई दीवार आड़े आती नहीं
जब जी करता है यारों से
मिलता हूँ
उनकी सुनता हूँ अपनी सुनता हूँ
हैं दूरियां बहुत
पर जब भी ओनलाइन आता हूँ
दूरियां मिटाता हूँ
कविता सुनाता हूँ
गप्पे लड़ाता हूँ
मन बहलाता हूँ, दिल लगता हूँ
क्या बताऊ क्या क्या करता हूँ
ये जो बेतार का तार है
ज़िंदगी की पतवार है
यारो से मिलाता
ये इन्टरनेट भी यार है
: शशिप्रकाश सैनी
This is my entry to the ‘Internet is Fun’ Contest on IndiBlogger.
Loved the poetry!
ReplyDeleteGood Luck for the contest:)
धन्यवाद आकांक्षा जी
Deletequite liked it...
ReplyDeletehttp://chroniclesofraviakula.blogspot.com/
बहोत ही अच्छा लिखा है आपने..मोबाइल इन्टरनेट के जरिये क्या-क्या किया जाता है, ये बखूबी बताया है! Best of Luck for the contest
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