ऐ सफर हम, हमसफ़र हो ना पाएंगे




न बहलाना, न फुसलाना
न ख्वाब सुहाने दिखलाना,
न बंधन बेडी
न पिजरा सोने का लाना,
ऐ सफर हम हमसफ़र हो ना पाएंगे
एक दिन लौट के घर जाएंगे
छोड़ के दुनिया तेरी अपने शहर जाएंगे.


न मुझको चाहे ताजमहल
न नोटों का कोई राजमहल,
मेरा दो बीएचके  भारी है
बचपन से उससे यारी है.


न किस्मत का पकवान मुझे
न धन ऐसा,
न कर ऐसा धनवान मुझे
जो कर दे न वीरान मुझे.

पापा मम्मी भाई बहना
है जीवन का सारा गहना
है दूर नहीं मुझको रहना,
सुख देता तो सुख भोगूं
गर दर्द मिले तो संग सहना.

स्कूल मेरा अलबेला था
जिन मैदानों में खेला था,
तेरे कॉन्वेंट तेरे बोर्डिंग
रख सारे अपने होर्डिंग,
मेरी औलादे भी खेलेंगी
जिस माटी में मैं खेला था.


अपनों में रहने का आदि
गैरो में मुझको डाल नहीं,
थोड़ा शहर मुझमे भी था
जाने का गम उसे भी था.


तस्वीरो से आबाद रखता हूँ
घर लौटना है, ये याद रखता हूँ,
मजबूरीयों का शिकार आदमी तो हूँ
पर इच्छाओं को आज़ाद रखता हूँ
किस ओर है शहर मेरा, ये याद रखता हूँ.


: शशिप्रकाश सैनी 

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