अपनी कहानी को कहानी कहे कैसे
अपनी कहानी को कहानी कहे कैसे
आगाज़ भी नहीं है अंजाम भी नहीं
कैसा नसीब है मोहब्बत जहा मयखाना हुई
इतनी बिकी की मेरे हाथों में एक जाम भी नहीं
उसकी तस्वीर अब तक मेरी किताबो में है
बिना देखे दिल को मिलता आराम भी नहीं
बिकने को तैयार था दिल-ए-बजार में "सैनी"
कोई खरीदता नहीं देता सही दाम भी नहीं
: शशिप्रकाश सैनी
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