ये गाँधी क्यों है
( ये मेरी एक पुरानी कविता है मैंने इसमें कुछ परिवर्तन किया है वर्तमान मुद्दे पे )
क्या ये कभी
नंगे पाँव धरा पे चला होगा
क्या धूप में
इसका भी पसीना बहा होगा
क्या बारिश में
ये कभी भीगा होगा
क्या ये कभी
गैरो के गम में रोया है
क्या ये
बिना बिस्तर सोया है
क्या ये उस महात्मा की
ज़िंदगी का
एक टुकड़ा भी जिया है
तो ये काहे का गाँधी
ये गाँधी क्यों है
बिना मातृत्व की छाव के
बिना खानदानी नाव के
क्या ये पानी में उतरा है
तो क्यों ये २५वे वसंत में
ही
प्रधानमंत्री बनने का दम
भरता है
आज नहीं हरदम भरता है
ये गाँधी क्यों है
ये बस उसकी बात नहीं
यहाँ बाज़ार है लगा हुआ
कोई गाँधी बेचता है
तो यादव से माधव तक सब
मिलेगा
कोई करुना का सागर बन
निधि इतनी जमाली है
की ३ जी है
आदर्श सब बिकाऊ है
इनके घरों में सब कमाऊ है
अगर ये बाज़ार है
तो ये सब बाजारू है
सांसे गिनती में हमे बराबर
मिली
संविधान में हमारी भी उतनी
ही जगह
जीतनी इनकी
तो ये नाइंसाफी क्यों
ये गाँधी क्यों है
: शशिप्रकाश सैनी
bahut achi kavita hai
ReplyDeleteशुक्रिया गीता जी
DeleteBahut hi uttam likha hai aapne ....People have really forgotten "Gandhi" as definition and it's painful to see many ignorant of our history and struggle behind.
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