कम कहूँगा ज़्यादा समझिए

कम कहूँगा ज़्यादा समझिए
अरमा टूटे है मै भरा बैठा हू
इनदिनों हमसे न उलझिए
कम कहूँगा ज़्यादा समझिए
कविता मरहम है शायरी है दवा
इस दिल-ए-बीमार को खुदा की दुआ
कम कहूँगा ज़्यादा समझिए
ज़िंदगी जीने को सबको चाहिये वजह
कविता मेरी जीने की वहज
कम कहूँगा ज़्यादा समझिए


: शशिप्रकाश सैनी

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