ये आग खाक करेगी ना पास लाओ इसे बस झुलसने का शौक़ मुझे ना जलाओ मुझे दर्द-ए-दिल किसी नशे से ना बहकने वाला चाहे एक घुट दो जाम पूरा मैखाना पीला दे जज्बाती आदमी हू इन्हीं जज्बातों का सिला है दिल जब भी धड़का इश्क-ए-गम मिला है जब वक्त लगाता मरहम होता है नशा कम खुदा धड़कने को कोई दिल्लगी दे दे नशा रख वही बस बोतल नयी दे दे दिन-ब-दिन पिए और दुनिया शराबी कहें इससें तो अच्छा दिल टूटे और दिल-ए-खराबी रहे : शशिप्रकाश सैनी
कुछ मेरे भीतर था जिंदा जो बचपन जैसा था एक रात ऐसा डर आया खुद से लड़ना छोड़ दिया है हाँ! मैंने कविता पढ़ना छोड़ दिया है सपनों की सच्चाई देखी देखा टूटें अरमानों को प्रतिभा के माथे चढ़ चढ़ कर मन का मढ़ना छोड़ दिया है हाँ! मैंने कविता पढ़ना छोड़ दिया है छोड़ सके तो, छोड़ मैं देता कागज कलम सिहाई को लत अपनी ये तोड़ न पाया भाव मैं गढ़ना छोड़ न पाया पर हाँ! मैंने कविता पढ़ना छोड़ दिया है # Sainiऊवाच
EMI से दबी हैं Petrol से जली हैं Inflation हैं डेली Salary Monthly हैं घुट घुट के मै Suffer करू और कितना मै जी सबर करू खाना दाना सभी सब कुछ लगे हीरे मोती नगीने से Salary मेरी लड़ न पाती महीने से हफ्ते पहले गुजर गई तिनका तिनका बिखर गई चाहतो की चिता जली जिंदगी धुए से भर गई हर महीने वही है आंसू वही Tragedy हैं Salary Monthly हैं Salary मेरी लड़ न पाती महीने से खून नस में जो बहता कहता बहते पसीने से क्यों नहीं तू लड़ता लड़ता पुरे महीने से लड़ लड़ के जब मै पार हुआ कुछ रुपया जब तैयार हुआ बारह(12) बजते दाम बढे हम लुट गए घर पे पड़े पड़े Salary ने भी दम तोड़ा Savings हुई कुर्बान अब तो लगता Inflation ले कर रहेगा जान : शशिप्रकाश सैनी
Beautiful lines of irony..:-)
ReplyDeletedhanywaad
Deleteisi ka naam zindgi hai :)
ReplyDeleteji alka ji
Delete