मै बचपन जैसा हू
मै खेलूंगा पानी से भी
मै आग लगाऊंगा
मुझे बाकी अब भी बच्चा
कुछ भी कर जाऊंगा
न दीवारों से डरता मै
न तलवारो से डर
दीवारे लाघुन्गा मै
भाग भी जाऊंगा
मटमैला मै मै मटमैला
हू कपडों से
कीचड़ से न डरता
हू न बारिश से
न धूल की फिकर
न धूप से ही डर
चमड़ी मेरी मोटी
न करता कुछ असर
डरता ना डरता ना
ना कोई फिकर
दिल से अब भी बच्चा हू
क्या होता है डर
सब्र नहीं बेसब्र हू मै
सच्चा हू मगर
दिल में जो चेहरे पे वो
बाते मेरी सीधी है
न टेड़ी है नज़र
एक ही मेरी रंगत है
एक ही सूरत है
सब अपनी अपनी करते
मै हम में जीता हू
दोस्त मेरे बच्चे जैसे
मै बचपन जैसा हू
: शशिप्रकाश सैनी
wow..!!
ReplyDeletenice poetry..almost nostalgic..
धन्यवाद नुपुर जी
DeleteA good one...
ReplyDeletehttp://chroniclesofraviakula.blogspot.com/