न डालो पांचो उंगलिया घी में
न डालो पांचो उंगलिया घी
में
जब खुलेगी पोल
सब डाल देंगी तुम्हे नदी
में
न डालो पांचो उंगलिया घी
में
जब उबलेंगी
तो उबल जाओगे उन्हीं में
खुशी हो जाएगी खुदखुशी में
न डालो पांचो उंगलिया घी
में
दिल खिलौना, प्यार खिलवाड़
नहीं है
आज जीते हो, कल हारोगे इसी
में
न डालो पांचो उंगलिया घी
में
जिंदगी सबकी इन्साफ करती है
स्वर्ग नर्क होता नहीं कुछ
जमीं हिसाब करती है
कांटे बोओगे
तो कांटे ही मिलेंगे वापसी
में
न डालो पांचो उंगलिया घी
में
कोई रोए तो हँसो ना
इतना उड़ो ना
कल तुम्हारी सिसकिया
दब न जाए हँसी में
न डालो पांचो उंगलिया घी
में
आज घी में हो
कल कढाई में होगे
ज़िंदगी आग देगी
जल जाओगे इन्ही में
न डालो पांचो उंगलिया घी
में
गर जानना है
क्या मजा है आशिकी में
एक से दिल लगाइए
खो जाईए उसी में
न डालो पांचो उंगलिया घी
में
Very nice poem, Shashi. The thoughts have been given right words to express :)
ReplyDeleteधन्यवाद दिवाकर जी
Delete