न डालो पांचो उंगलिया घी में



न डालो पांचो उंगलिया घी में
जब खुलेगी पोल
सब डाल देंगी तुम्हे नदी में
न डालो पांचो उंगलिया घी में

जब उबलेंगी 
तो उबल जाओगे उन्हीं में
खुशी हो जाएगी खुदखुशी में
न डालो पांचो उंगलिया घी में

दिल खिलौना, प्यार खिलवाड़ नहीं है
आज जीते हो, कल हारोगे इसी में
न डालो पांचो उंगलिया घी में

जिंदगी सबकी इन्साफ करती है
स्वर्ग नर्क होता नहीं कुछ
जमीं हिसाब करती है
कांटे बोओगे
तो कांटे ही मिलेंगे वापसी में
न डालो पांचो उंगलिया घी में

कोई रोए तो हँसो ना
इतना उड़ो ना
कल तुम्हारी सिसकिया
दब न जाए हँसी में
न डालो पांचो उंगलिया घी में

आज घी में हो
कल कढाई में होगे
ज़िंदगी आग देगी
जल जाओगे इन्ही में
न डालो पांचो उंगलिया घी में

गर जानना है
क्या मजा है आशिकी में
एक से दिल लगाइए
खो जाईए उसी में
न डालो पांचो उंगलिया घी में

: शशिप्रकाश सैनी 


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Comments

  1. Very nice poem, Shashi. The thoughts have been given right words to express :)

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