कहने को मल्लाह है
कमजोर कंधे हैं पर हौसला बड़ा हैं इसकी लहरों से ठनी रहे की चूल्हे मे आग बनी रहे कमजोर हैं पर योद्धा हैं अपने जज्बे पे लड़ता हैं भूख हिम्मत और ताकत हो जाती हैं जब भी नदी डराती हैं कहने को मल्लाह हैं इसकी नाव से पूछो घर के चूल्हो से बहना के बस्ते से घर की आटा दाल हैं स्कूल की फीस हैं घर को रखता हैं रोशन ये वो चिराग हैं खुद जलता हैं चूल्हे को देता आग हैं दो वक़्त की रोटी का इंतेज़ाम हैं दुनिया के लिए मल्लाह इसका नाम हैं : शशिप्रकाश सैनी