मेरी मदिरा मेरे पास
न देशी दारू की दुकान
न मैखाने से पहचान
जो नशा ज़िंदगी देती मुफ्त
में
मै उन्हें बोतलों में
खरीदता नहीं
मेरी मदिरा मेरे पास
तीखे मोड चडाई ढलान
मुश्किल ज़िंदगी कभी आसान
मेरी मदिरा इन्ही में है
नशा ज़िंदगी में है
मेरी मदिरा मेरे पास
एक कटिंग चाय
दो वाडा पाँव
समोसे जलेबी से लगाव
मेरी मदिरा इन्ही में है
नशा हर किसी में है
मेरी मदिरा मेरे पास
माँ की लाड में
पापा की डाट में
बहना से उलझने में
फिर सुलझने में है
इनके प्यार में
नशा पुरे संसार में
मेरी मदिरा मेरे पास
यारो की यारी में
इश्क की खुमारी में
रूठने मनाने में
होठो के टकराने में
प्यार जताने में
उनसे नज़र मिलाने में
जज्बात दिखाने में
नशा इतना है
क्यों जाए मैखाने में
मेरी मदिरा मेरे पास
कविता में शायरी में
पूरी मेरी डायरी में
हर शब्द नशीला है
दिल से जो निकला है
मेरी मदिरा मेरे पास
जब छलके इतनी
तो क्यों खरीदनी
: शशिप्रकाश सैनी
Ati sundar :D
ReplyDeleteधन्यवाद ग़ज़ला जी
DeleteVaah! You're a Gulzar in the making :)
ReplyDeleteतारीफ़ के लिए शुक्रिया आकांक्षा जी
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