आधुनिक इश्क



चाँद है चांदनी है 
गुल है गुलिस्ता है
इक इस दिल से पूछिये 
मेरे लिए वो क्या क्या है
वो भोर की हवा है
दिल-ए-दर्द की दवा है
डूबते को तिनका क्या
तुम पूरी नाव हो 
जेठ की दुपहरी में 
ठंडी छाव हो 
अब क्या क्या बताए 
तुम क्या क्या हो 

तुम कस्तूरी की सुगंध 
तुम संक्रांति की पतंग 
तुम ज़िन्दगी जीने की उमंग

इतना भी ज्यादा 
झूठ न बुलवाओ 
कही हम सच न बतादे 
तुम क्या हो 

तुम मेरे मोबाइल का बिल हो 
तुम घाटेवाली मिल हो
तुम पेट्रोल का बड़ा दाम हो
तुम महंगाई का पैगाम हो
तुम शौपिंग की लिस्ट हो
तुम वलेनटाइन का व्यापार हो
तुम खाते का उधार हो
तुम बड़ा महंगा प्यार हो
कितना बताए तुम क्या क्या हो

तुम फेसबुक की 
वो प्रोफाइल पिक हो
जब तक दुझी न खिचाए
तब तक बदली न जाए 
तुम भावो का आभाव हो 
क्या क्या बताए तुम क्या क्या हो 



मन की इच्छाओ पे 
तन भरी है
ये प्रेम की लाचारी है 
मै मन से उथला हू 
तुम मन से ओछी हो
हीर राँझा पे कलंक है
लैला मजनू पे दाग 
ये आधुनिक इश्क 
ये नव युग का राग
बस तन की आग 
बस तन की आग


: शशिप्रकाश सैनी



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