मै अब बोलने लगा हू
ज़ज्बात अल्फाज़ होने लगे है
चुप नहीं रहता बोलने लगा हू
दिल-ए-किताब से धुल हटाई है
पन्ने दर पन्ने खोलने लगा
हू
आंखे बोलती है
तेवर चुप नहीं रहते
इश्क की आग जो बढने लगी है
जुबा कम पड़ने लगी है
इशारों में गहराई झांक लो
आंखे देखो मन भाप लो
दिन के चार चक्कर
तेरे घर के इधर उधर
रास्ता था कहा जाते किधर
तेरी गली अब रास्ता होने
लगी है
चाय की चुस्कियो वाली सुबह यही
है
रात की चाँदनी भी यही देखनी
है
पड़ोसी जान गए है
तुम भी जान जाओगी
की मै अब बोलने लगा हू
: शाशिप्रकाश सैनी
इश्क की आग जो बढने लगी है
ReplyDeleteजुबा कम पड़ने लगी है...wah Shashi wah!!
Bahot Khoob Shashi ji
ReplyDeleteधन्यवाद अमित जी , कपिल जी
ReplyDeletethank u steve