क्या थी नाराज़गी हम समझे नहीं


क्या थी नाराज़गी हम समझे नहीं
ना शिकवा ना गीला
कुछ बोलिए तो जरा
काले चस्मो से छुपाली है आंखे
न आँसू दिखे
हम अब कैसे मन में झाँकें
मिलो बात करो
आओ तो सही
हमसे सुनो अपनी सुनाओ तो सही
पास आने पे पिघल जाएगी
रिश्तों की बर्फ
हम भी कुछ बढ़े
आप भी आए हमारी तरफ
मिलते रहिये मुलाकातों का सिलसिला रहे
गिले है ज़िंदगी से बहुत
आप से क्यों गीला रहे
: शशिप्रकाश सैनी


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