दिल अब तक मेरा बच्चा है



मन की भी कुछ सोच है
कुछ इच्छा है
कब तक दिल को समझाऊ 
तू अब तक बच्चा है
मानी के मनमानी के
खेल खेल जवानी के 
बुजुर्गो की सुने तो बच्चा है
छोटे कहे की 
तेरा समय निकल चूका है 
मन की भी कुछ इच्छा है
दिल को कब तक बहलाऊ 
की तू बच्चा है

पलंग की सिलवटो में 
कोई कहानी नहीं 
कभी कोई मानी नहीं 
की हम ने कोई मनमानी नहीं
पलंग की सिलवटो में 
कोई कहानी नहीं 

न बोतलों में नशा है
न होठो में धुआ है 
न कही पैर फिसला है 
दिल को कैसे बतलाऊ 
दुनिया समझती तू बच्चा है 

यही तेरी गलती है 
यही तेरा दोष है
तू रात के रिश्तो से 
ज़िन्दगी का साथ चाहता है 
बीके हुए से 
जो अपनी कीमत पूछता है
यही तेरी गलती है 
यही तेरा दोष है
ये तो सही है 
की दिल अब तक तेरा बच्चा है 

कोई तो ऐसी बची होगी 
जो दिल की बच्ची होगी 
मन की सच्ची होगी 
बस उसी की इच्छा है
दिल अब तक मेरा बच्चा है 

: शशिप्रकाश सैनी


Comments

  1. Dil to baccha hai ji....beautiful lines.

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  2. ...wish you best of luck Shashi, may you find the 'bachchi' of your choice! Nice poem!

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