न चोरी, न चकारी, न गुंडई में हूँ महेनत, लगन, शिद्दत, इन्हीं आदतों में हूँ न चोरी, न चकारी, न गुंडई में हूँ दिन रुसवाई, रात तनहाई में हूँ दो वक्त की रोटी के लिए बस खटतारहा हूँ और ईनाम में मिली तोहमतें हैं लोग यहाँ, मुझे बुराइयों में गिनते हैं मेरा घर, मेरी टैक्सी, मेरा ठेला, जला देंगे जब जी में आए, थप्पड़ लगा देंगे नोटों की गट्ठर, अगर होती मेरे सर तो नहीं जलता मेरा घर बिकाऊ हैं भीड़, बिकाऊ हैं पत्थर होनी चाहिए बस, नोटों की गट्ठर कहा से लाए नोटों की गट्ठर की अब तक, मैं ईमान में हूँ खाकी, खादी, बिक चुकी हैं इनकी नज़रों में, मैं इंसान नहीं हूँ क्योंकि आज भी ईमान में हूँ जो दो वक्त की रोटी के लिए पीसता हो दिन रात वो बदले में क्या देगा उसका तो घर ही जलेगा बंधू मित्र आना नहीं यहाँ ये स्वप्न नगरी नहीं छलावा हैं मशीन इतना हुए की न सपने हैं न इच्छा हैं कभी कभी भूल जाते हैं की हम भी जिन्दा हैं जब से इस शहर की राजनीति हुआ हूँ मैं सब सहमति से नोचे हैं दुर्गति हुआ हूँ मैं मुझे मारना भी वोट हैं पुचकारना भी वोट ह
photo courtesy: Outlook India उपहार मे सत्ता मिली जमीन की नहीं वो आसमान से उतरी ढोंग ढोंग की देवी कुछ कहते है चंडी कुछ के लिए दुर्गा मुझे तो बस डायन दिखी जब भी ध्यान से देखा वो थी रानी घमंडी जेपी के नरो से कुर्सी ऐसी हिल गयी डायन इतनी घबराई की लोकतन्त्र लील गयी न्यायालय खा गई अखबार सारे पचागाई लोकतन्त्र बेड़ियो मे हवालात जेल मे था ऐसी थी रानी घमंडी आज भी अपरोक्ष आपातकाल है सत्ता कितना भी देश को खा ले जैसे मन करे दबा ले इनके लिए कोई सज़ा नहीं बस मज़ा है क्यूकी ये दल नहीं दलदल है भ्रष्टाचार का महल है डायन के वंसजो से उम्मीद भी क्या रखे जनता के जिस्म मे दाँत गड़ाएंगे बूंद बूंद पी जाएंगे वो थी अब ये है रानी घमंडी : शशिप्रकाश सैनी
that is a nice one, really liked it
ReplyDeleteबेहद सुन्दर रचना
ReplyDeleteकम शब्दों में सटीक संवदेना
emotional
ReplyDeleteधन्यवाद चिराग जी
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