हाथो में कोई हाथ नहीं
हाथो में कोई हाथ नहीं
किसी भी सूरत पे लुटाता नहीं हू दिल
अब उभरते कोई जज़्बात नहीं
मन को बहका सके
आते वो ख़यालात नहीं
जाने क्या हो गया हूँ मै
या तो पत्थर हो गया हूँ
या कोई देवता हूँ मै
: शशिप्रकाश सैनी
small and full of emotions....Bahut hi sunder kavita Sashiprakash Ji
ReplyDeleteधन्यवाद सीमा जी
DeleteHi Shashiprakash!
ReplyDeleteNice poem indeed!
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