मन तुम्ही को खोजता हैं
दूर हैं आँखों से ओझल
मीत मेरी प्रीत निश्छल
पत्र तेरा हाथ लेकर , बस तुझी को सोचता हैं
मन तुम्ही को खोजता हैं |
हाथ में हाथ थामे
बाहों में कटती हैं शामे
नव युगल का प्रेम देख , अश्रु अपने पोछता हैं
मन तुम्ही को खोजता हैं |
प्रेमियों का दिन हैं आया
रंग लालिमा का छाया
उपवन के गुलाब सारे , हाथ मेरा नोचता हैं
मन तुम्ही को खोजता हैं |
हैं यहाँ सब पराये
जाने कब हम पास आये
हैं जुदाई टीस ऐसी , साँप तन पे लोटता हैं
मन तुम्ही को खोजता हैं |
: शशिप्रकाश सैनी
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Bahut sundar rachna sirji.. bahut khoob..:)
ReplyDeletekabhi waqt mile to mere blog par bhi aaiyega.. aashaa karta hun ki aapko pasand aayega.. :)
palchhin-aditya.blogspot.com
nice poem..
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