हम समझदारी की चादर में लिपटे रहे
हम समझदारी की चादर में लिपटे रहे
हम ने कोई बेवकूफी न की
बस दिमाग की सुनी
दिल की न सुनी
देने वाले ने इतनी अक्ल दी
कि अब तक की ज़िन्दगी अकेले है जी
जब किसी ने विस्मित किया भरमाया
किसी पे दिल आया
अपने जज्बातों पे डाल दी मिट्टी
इतनी हमे अक्ल क्यों दी
कवि होने की ये व्यथा रही
बात जो जुबाँ की थी
हमने कागजों पे उकरे दी
इश्क बेवकूफों की सौगात थी
उसने हमे थोड़ी भी बेवकूफी न दी
: शशिप्रकाश सैनी
bahut khoob sir
ReplyDeleteबात जो जुबा की थी
हमने कागजों पे उकरे दी
इश्क बेवकुफो की सौगात थी
उसने हमे थोड़ी भी बेवकूफी न दी
धन्यवाद चिराग जी
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