पैसा पैसा जो जुटाया था कभी घर के लिए
पैसा पैसा जो जुटाया था कभी
घर के लिए
महंगाई मार गई कम पड़ता है
अब कबर के लिए
बहोत जोड़े बहोत तोड़े जुटाए
शब्द कई
बेबहर हम तरसते रहे बाबहर
के लिए
खुश्बू एक ख्वाब रही जहन
में आई नहीं
घर बीके नीलाम लोग हुए उस
इतर के लिए
उसने तरासे थे उतारी थी जान
पत्थर में
धूल खाते रहे तरस गए पारखी
नजर के लिए
चिंगारी उठी आग हुई राख हुआ
सब कुछ “सैनी”
क्या लाए थे क्या ले जाएंगे
उस सफर के लिए
: शशिप्रकाश सैनी
sahi kaha..kya laye thhe..kya le jaenge uss sagar ke liye.. wahh.. :)
ReplyDeletehamesha ki tarah ek khubsurat rachna :) :)
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