अब छुपा लो बात कल बात छुपाये न बने
रौशनी नाराज रही अब तक साये न बने
ना अँधेरा समझे बात मेरी निभाये न बने
घाव माथे तक फैले नजर न आने लगे
अब छुपा लो बात कल बात छुपाये न बने
फिर वही रोना रहा दिल की कोई कीमत नहीं
हकदार कोइ आ पड़े हक़ फिर जताये न बने
चाहू कितना मगर होठ हिलते ही नहीं
दिल इतना दुखा और मुस्कुराये न बने
किसने चलाया पीठ पे खंजर मालूम हैं हम को
भरोसा रिश्तो से उठ जाए नाम बताये न बने
अब तो चलो की छोड़ दो कुछ यहाँ रखा नहीं
रूह छोड़ेगी साथ जब कब्र से जाये न बने
एक ने चाहा नहीं तो दूसरी तो है अभी "सैनी"
और गिनने चलो तो गिनतियाँ गिनाये न बने
kaafi gehre sandarbh mein likhi gayi panktiyaan hain yeh...iss dard ki bhasha sirf tum hi samajh sakte ho...bohot khoob likha hai
ReplyDeleteMera blog bhi padh sakte ho:
Ankit’s Vivacious Memoirs
Lovely softly dancing lines... loved the poem.
ReplyDeleteArvind Passey
www.passey.info
सराहना हेतु आभार अरविन्द जी
DeleteExquisite words, pain oozes from every word. But, that's how people are..Beautiful.
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ReplyDeleteरौशनी नाराज रही अब तक साये न बने
ना अँधेरा समझे बात मेरी निभाये न बने
bahut accha likhte hai sirji aap...
धन्यवाद सन्नी जी
DeleteI can feel the pinch, I don't know how and why pain and beauty go hand in hand...
ReplyDeleteआकांक्षा जी
Deleteआप तक बात पहुची अच्छा लगा
सराहना हेतु आभार