जिंदगी की धूप झेली शाम का इंतजाम मोहब्बत दरख्तों दीवारों छतों पे लिखेंगे हम नाम मोहब्बत डरना छुपना है क्यों दिल की सुनी किया कोई पाप नहीं सडको पे निकल करेंगे सरेआम मोहब्बत
This post has been published by me as a part of the Blog-a-Ton 39 ; the thirty-ninth edition of the online marathon of Bloggers; where we decide and we write. To be part of the next edition, visit and start following Blog-a-Ton . The theme for the month is "Break" टिक टिक टिक घड़ी के कांटे टिक टिक टिक घड़ी ये काटे दिन में सूरज बनता हू मै रातो को भी चाँद बनू मै दो कौड़ी का काम करू मै हर कौड़ी के नाम मरू मै चल चल के जूता गिस जाए न पल भर को आराम करू मै सुबह से दफ्तर नौकर था मै घर में शौहर बेटा हू कही बाप की ड्यूटी पे मै घोडा बन के दौड़ा हू मशीनी जिंदगी हो गई है पुर्जे मेरे काम करे तो ईनाम मिलेगा ईनाम मिलेगा सिक्के मिलेंगे बेटा पती पिता तभी तक अच्छा हू जब तक सिक्के है बिना पैसो के मै वो बंद घड़ी हू जो दीवारों पे सोभा नहीं देती जब किसीके काम न आती कूड़े कबाड़ में गिनी जाती दुनिया के लिए टिक टिक टिक कब तक घड़ी रहे थोड़ा खुद को ब्रेक दे अब की बासुरी बने कोई फुके फुक तो धुन हो जाऊ नजर न आऊ शरमाऊ मै गाऊ कोई...
न चोरी, न चकारी, न गुंडई में हूँ महेनत, लगन, शिद्दत, इन्हीं आदतों में हूँ न चोरी, न चकारी, न गुंडई में हूँ दिन रुसवाई, रात तनहाई में हूँ दो वक्त की रोटी के लिए बस खटतारहा हूँ और ईनाम में मिली तोहमतें हैं लोग यहाँ, मुझे बुराइयों में गिनते हैं मेरा घर, मेरी टैक्सी, मेरा ठेला, जला देंगे जब जी में आए, थप्पड़ लगा देंगे नोटों की गट्ठर, अगर होती मेरे सर तो नहीं जलता मेरा घर बिकाऊ हैं भीड़, बिकाऊ हैं पत्थर होनी चाहिए बस, नोटों की गट्ठर कहा से लाए नोटों की गट्ठर की अब तक, मैं ईमान में हूँ खाकी, खादी, बिक चुकी हैं इनकी नज़रों में, मैं इंसान नहीं हूँ क्योंकि आज भी ईमान में हूँ जो दो वक्त की रोटी के लिए पीसता हो दिन रात वो बदले में क्या देगा उसका तो घर ही जलेगा बंधू मित्र आना नहीं यहाँ ये स्वप्न नगरी नहीं छलावा हैं मशीन इतना हुए की न सपने हैं न इच्छा हैं कभी कभी भूल जाते हैं की हम भी जिन्दा हैं जब से इस शहर की राजनीति हुआ हूँ मैं सब सहमति से नोचे हैं दुर्गति हुआ हूँ मैं मुझे मारना भी वोट हैं पुचकारना भी व...
This post has been published by me as a part of the Blog-a-Ton 42 ; the forty-second edition of the online marathon of Bloggers; where we decide and we write. To be part of the next edition, visit and start following Blog-a-Ton . The theme for the month is "COLOR" माँ पिंकू कहता है, कल होली है वो रंग लाया है लाल हरा पिला नीला मुझे भी बुलाया है माँ ये रंग होता क्या है ? ये होली क्या होती है ? मैंने क्यों खेली नहीं अब तक ? माँ, बताओं ना लाल को लाल क्यों कहते है ? हरे को हरा क्यों ? क्या रंग तरल भी होता है ? और ठोस भी ? बरसात का भी कोई रंग होता है ? रंगीन होती है ओस भी ? माँ, मैंने सुना है हर चीज का रंग होता है तुम्हारा क्या रंग है ? और मेरा क्या ? क्या भईया का भी कोई रंग है ? मुन्ना का भी ? बताओं ना माँ किस स्वाद में आते है रंग ? मीठे होते है, तीखे या चटपटे ? माँ बताओं ना किस स्वाद में आते है रंग ? माँ क्या रंगों की भी कोई खुश्बू है ? बताओं न...
Pyar kiya toh darna kya :))
ReplyDeleteजी ग़ज़ला जी
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