जिंदगी की धूप झेली शाम का इंतजाम मोहब्बत दरख्तों दीवारों छतों पे लिखेंगे हम नाम मोहब्बत डरना छुपना है क्यों दिल की सुनी किया कोई पाप नहीं सडको पे निकल करेंगे सरेआम मोहब्बत
न चोरी, न चकारी, न गुंडई में हूँ महेनत, लगन, शिद्दत, इन्हीं आदतों में हूँ न चोरी, न चकारी, न गुंडई में हूँ दिन रुसवाई, रात तनहाई में हूँ दो वक्त की रोटी के लिए बस खटतारहा हूँ और ईनाम में मिली तोहमतें हैं लोग यहाँ, मुझे बुराइयों में गिनते हैं मेरा घर, मेरी टैक्सी, मेरा ठेला, जला देंगे जब जी में आए, थप्पड़ लगा देंगे नोटों की गट्ठर, अगर होती मेरे सर तो नहीं जलता मेरा घर बिकाऊ हैं भीड़, बिकाऊ हैं पत्थर होनी चाहिए बस, नोटों की गट्ठर कहा से लाए नोटों की गट्ठर की अब तक, मैं ईमान में हूँ खाकी, खादी, बिक चुकी हैं इनकी नज़रों में, मैं इंसान नहीं हूँ क्योंकि आज भी ईमान में हूँ जो दो वक्त की रोटी के लिए पीसता हो दिन रात वो बदले में क्या देगा उसका तो घर ही जलेगा बंधू मित्र आना नहीं यहाँ ये स्वप्न नगरी नहीं छलावा हैं मशीन इतना हुए की न सपने हैं न इच्छा हैं कभी कभी भूल जाते हैं की हम भी जिन्दा हैं जब से इस शहर की राजनीति हुआ हूँ मैं सब सहमति से नोचे हैं दुर्गति हुआ हूँ मैं मुझे मारना भी वोट हैं पुचकारना भी वोट ह
photo courtesy: Outlook India उपहार मे सत्ता मिली जमीन की नहीं वो आसमान से उतरी ढोंग ढोंग की देवी कुछ कहते है चंडी कुछ के लिए दुर्गा मुझे तो बस डायन दिखी जब भी ध्यान से देखा वो थी रानी घमंडी जेपी के नरो से कुर्सी ऐसी हिल गयी डायन इतनी घबराई की लोकतन्त्र लील गयी न्यायालय खा गई अखबार सारे पचागाई लोकतन्त्र बेड़ियो मे हवालात जेल मे था ऐसी थी रानी घमंडी आज भी अपरोक्ष आपातकाल है सत्ता कितना भी देश को खा ले जैसे मन करे दबा ले इनके लिए कोई सज़ा नहीं बस मज़ा है क्यूकी ये दल नहीं दलदल है भ्रष्टाचार का महल है डायन के वंसजो से उम्मीद भी क्या रखे जनता के जिस्म मे दाँत गड़ाएंगे बूंद बूंद पी जाएंगे वो थी अब ये है रानी घमंडी : शशिप्रकाश सैनी
कभी कभी पुरानी तस्वीरों से धूल हटाता हूँ बीती जिंदगी मैं फिर जीना चाहता हूँ, कैसे मैं बच्चा रहा कैसे हुआ जवान, वो दादी की अठन्नियां वो नानी के पकवान. तब बड़प्पन की बीमारियाँ न थी क्या खूब जिंदगी थी, किसी कोने में दबे रहने दो ख्वाब मेरे मैं फिर आऊंगा, जिंदगी जब पड़ाव दर पड़ाव छुटने लगती है मैं लौटना चाहता हूँ उसी कमरे में समय जहाँ भागता नहीं. दीवार पे सीलन जाले है मकड़ी के, किसको है फुर्सत इस तरफ देखे. समझदारी की परत पे एक छोटी सी सनक है, जो दुनिया के लिए बेकार है वो मेरी यादे है मेरा हक है. एक टोपी है छोटी सी रंग से भूरी है , मगर यादे सुनहरी है पापा कलकत्ता से लाए थे. वो टोबो साईकिल जो मेरा ट्रक्टर हुआ करती थी, ख्वाबो लगते थे पर आसमानों उड़ा करती थी . टुकड़ा टुकड़ा है पर मेरा खजाना है भरा धूल हटाने की देर है, मैं फिर रम जाऊंगा घंटो ख्वाबो में रहूँगा वही धुन गुनगुनाऊँगा. : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध Click
Pyar kiya toh darna kya :))
ReplyDeleteजी ग़ज़ला जी
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