पाबंदी
आज छत बंद की है
कल बंद खिडकियां होंगी
फिर साँसे लेना गुनाह हो जाएगा,
हवाओ से जूझना है आदत मेरी
बरसात में भीगना है शौक.
मेरा आज़ाद रहना
बहना फिजाओ में
बात बात पे कविता कहना
मालूम न था इतना खटकेगा,
मेरी खुशी क़ैद करने के लिए
वो सौ ताले ले आएगा.
खिडकियां तो बंद कर दोगे
पर ख्वाबो का क्या ?
ख्वाब करोगे क़ैद
ऐसा भी कोई ताला बना ?
खुद को जताने के लिए
इंसा नहीं हूँ हो गया हूँ देवता
वो ताले लगाता है
बंदिशें बढाता है,
उसे लगता है
किसी की जिंदगी में दख्ल दोगे
किसी को रोकोगे सताओगे
तो खुदा हो जाओगे.
पर वो भूल गया है
हर ताला बड़ा हो या छोटा
खुल जाता है,
जब नहीं खुलता
थपेडे जिंदगी देती है
टूट जाता है,
जब हमने तोड़े थे ताले
1947 वाले,
फिर ये ताला तो मामूली है
अँधियारा छटेगा
मई 2014 में ये ताला भी टूटेगा
: शशिप्रकाश सैनी
That's a powerful one, Shashi...Brilliant :)
ReplyDeleteसराहना हेतू आभार पांचाली जी
DeleteMmm! Exquisite
ReplyDeleteसराहना हेतू आभार सुरेश जी
Deleteexcellent.....
ReplyDeleteanu
सराहना हेतू आभार अनु जी
Deleteपर ख्वाबो का क्या?
ReplyDeleteWell said :)
सराहना हेतू आभार ग़ज़ला जी
Delete..Bhai bahut khoob Shashi! Dil khush ho gaya!!
ReplyDeleteVery nice. Am all for freedom. We will be poor indeed if we start restricting everything. Perhaps a day will come when a common man cannot dream without permission. :(
ReplyDeleteधन्यवाद सब्यसाची जी
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