ये भी क्या खूब आजादी



जला शहर मेरा 
उनका भी तो था शहर 
थोड़ी भी फ़िक्र ना की
सरकारी आदेशो पे
पुलिस हो गई कैदी 
बस भूखे सन्यासी पे 
लाठी चलाने की मुस्तैदी


जो काटते है सर 
गिराते लाशे 

घर जलाइए
या शहर जलाइए
इनको पूरी छुट है 
दंगाईयों के लिए ना गोली 
ना लाठी 
ये भी क्या खूब आजादी 


आधी नींद मे मारा पीटा
पानी की बौछार दी 
निहत्थे सत्याग्रहियों पे लाठिया 
यही पुलिस की मुस्तैदी 



जो बहाता है खून 
जलाता है देश 
लुटता है घर 
छीनता है जिंदगी 
उसे पूरी आजादी  



जो मांगता है काला धन वापस आए 
हर मुह को रोटी मिले 
हर तन पे कपड़ा हो
हर गाव शहर से जुड़ा हो
हर बच्चा हँसे खिल खिलाए 
स्कूल जाए 
कोई कुपोषण से मरे ना 
देश का है धन 
कोई चोर ना आए
अपनी झोली भरे ना 
उस पे पूरी रोक
पाबन्दी 
भले उसके साथ पूरी आबादी  
उसके लिए लाठी 
ये भी क्या खूब आजादी 



: शशिप्रकाश सैनी

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