उस पार हम नहीं


मुझ में दफ़न करे कोई अनारकली को 
इतनी भी खुशकिस्मत दिवार हम नहीं 


हाँ ना कुछ तो कहो होठ हिलाओ तो सही 
ख़ामोशी समझे इतने भी समझदार हम नहीं 


इकरार न सही इन्कार तो करो 
कल कुछ हो गया तो खतावार हम नहीं 


न तेरी तलब में बैठे हैं न इन्तेजार में
न मर्ज अब रहा बीमार हम नहीं 


चुभती रही कानो में वो आवाज हम रहे
किसी साज का न साथ झंकार हम नहीं


मझधार में "सैनी" लड़ना हैं मुक़द्दर 
जो डूबेंगे बिच राह तो उस पार हम नहीं 


: शशिप्रकाश सैनी

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